नगर निगम की संपत्ति ठिकाने लगाने की योजना धड़ाम गिरी, भाजपा नहीं चाहती है कि ऐसा कोई कार्य हो जिसमें आती हो घोटाले की बू

रुड़की । नगर निगम की संपत्ति ठिकाने लगाने की योजना धड़ाम गिर गई है। अब योजना में शामिल लोगों में बौखलाहट है और वह परेशान हाल है। दरअसल, नगर निगम की संपत्ति से संबंधित मामला, जब भी चर्चा में आया तो तभी सवाल खड़े हुए। क्योंकि नगर निगम की संपत्ति पर हमेशा से ही भू-माफिया की निगाह रही है। एक दर्जन से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में चल भी रहे हैं। बहुत सारे भूखंड जिनकी लीज काफी समय पहले समाप्त हो गई थी उन पर अवैध कब्जा जमाए बैठे लोग बाकायदा किराया वसूल रहे हैं। कहीं नया नगर निगम बोर्ड उनके इस अवैध काम में दखल ना दें दें तो इससे पहले ही उन्होंने नगर निगम की संपत्ति को ठिकाने लगाने की योजना पर काम शुरू कर दिया। जिस में रंग सत्ताधारी पार्टी के कुछ नेताओं को भी शामिल किया। ताकि सारी प्रक्रिया अच्छे ढंग से तेजी से आगे बढ़ाई जा सके इसके लिए नगर निगम के अधिकारियों को भी साथ लिया। यहां पर जानकारी के लिए बता दें कि आज तक जब भी नगर निगम की संपत्ति कहीं पर किसी तरह से खुर्दबुर्द हुई है तो इसमें जरूर नगर निगम के किसी न किसी अधिकारी कर्मचारी का हाथ रहा है। इसीलिए नगर निगम के कई भूखंड के स्वामित्व को लेकर विवाद शुरू हुआ। नगर निगम की ओर से जब भी प्रभावी पैरवी नहीं हुई तो माफिया ने अपने हक में फैसला कराने की कोई कसर नहीं छोड़ी। अब चुनाव के दौरान भी एक माफिया नहीं यह भूखंड का फैसला अपने हक में करा लिया था। लेकिन जैसे ही नया बोर्ड सक्रिय हुआ तो उसने फिर से भूखंड को नगर निगम के नाम करा दिया। मौके पर भी नगर निगम का ही कब्जा हो गया। नगर निगम की जो संपत्ति खुर्दबुर्द होती रही है इसमें मुख्य रूप से मलकपुर चुंगी क्षेत्र सिविल लाइंस क्षेत्र, बीटी गंज, चावमंडी, साकेत माहीग्रान मुख्य रूप से शामिल है। लीज के मामले भी इन्हीं क्षेत्रों में अधिक है। अब जो लीज अवधि बढ़ाए जाने के प्रयास हो रहे हैं इसमें भी बहुत बड़ा घोटाला है। हालांकि घोटाले में शामिल लोगों अपने ढंग से सफाई पेश कर रहे हैं। ताकि मैसेज यह दिया जा सके कि वह जनता की भलाई के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है साधन संपन्न लोगों के पास संबंधित भूखंड है और वह ली जल्दी पूरे होने के बाद भी क्या वसूल रहे हैं इस बीच जानकारी के लिए बता दें कि एक दर्जन भूखंडों के बैक डेट में फर्जी तौर पर बैनामे भी करा लिए गए।आवंटित मकान नंबर के आधार पर बैनामे कराए गए हैं ।जबकि बीटी गंज ,साकेत,चावमंडी तक सारा एक ही नंबर है। मकान के आधार पर नंबर आवंटित कुछ नगर निगम के पूर्व के अधिकारियों कर्मचारियों ने ही किए हैं । जोकि सरासर नियम विरुद्ध कार्य है । जिन लोगों के द्वारा बैनामे कराए गए हैं । उसमें चला कि यह की जा रही है कि यह फर्जी बैनामे किसी को दिखाए नहीं जा रहे हैं। जब कुछ वर्ष बीत जाएंगे तो यह इन बैनामों के आधार पर संबंधित भूखंड पर अपना स्वामित्व होने का दावा कर देंगे। इसकी भनक कहीं ना कहीं नगर निगम के अधिकारियों को लग गई है। नगर निगम के नए बोर्ड को भी इस बात की जानकारी हो गई है तो इसीलिए नगर निगम बोर्ड ने तो तय कर लिया है कि लीज अवधि बढ़ने का कोई प्रस्ताव पारित किया ही नहीं जाएगा। यदि कोई शासन स्तर से इस संबंध में कोई कुछ कार्यवाही कराता है तो उसका भी डटकर विरोध किया जाएगा ।जरूरत पड़ने पर हाईकोर्ट में रिट दायर की जाएगी। इस बीच शिक्षा विभाग ने भी अपने भूखंड वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है फिलहाल उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के अधिकारियों के बीच संबंध में बातचीत हुई है । रुड़की के कुछ लोगों के द्वारा आज उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के सिंचाई मंत्री से भी फोन पर बातचीत की गई ।जिसमें उन्हें बताया गया कि पूर्व में जो भूखंड नगर निगम को दिए गए थे। वह नगर निगम ने आगे कुछ लोगों को दिए हैं। जिनका दुरुपयोग हो रहा है। उस संपत्ति को खुर्द खुर्द किया जा रहा है। उसे वापस लिया जाना जरूरी है। माना जा रहा है कि जल्द ही यह मामला दोनों राज्यों के उच्च अधिकारियों के बीच रखा जाएगा। ताकि लीज पर दी गई भूमि को खुर्दबुर्द होने से बचाया जा सके। वहीं भाजपा भी नहीं चाहती है कि कोई ऐसा मामला चर्चा में आए जिसमें कि सरकार पर सवाल खड़े होते हो। इसीलिए भूखंड के मामले पर शासन स्तर से माफिया को कोई राहत मिलने की दूर तक संभावना नहीं है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वैसे ही भ्रष्टाचार के खिलाफ काफी सख्त है।

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