चार दशकों में नोट, वोट, सपोर्ट ने रुड़की शहर का बदल दिया पूरा भूगोल, अवैध धंधों में लिप्त सफेदपोश माफियाओं के चेहरे बेनकाब हुए वे जेल भी गए, वरिष्ठ पत्रकार सुभाष सैनी ने कहा ऐसी घटनाओं को नजदीकी से देखा

रुड़की । रुड़की अतीत में एक छोटा शहर था इसके विकास की गति रुड़की के बीच से निकलने वाली गंग नहर के साथ साथ शुरू हुई जब अंग्रेजी शासन था। गंग नहर निर्माण की वजह से ही रुड़की में राजकीय उद्योग शाला की स्थापना हुई उधर थामसन इंजीनियरिंग कॉलेज उसके बाद रुड़की विश्वविद्यालय, अब उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद आईआईटी रुड़की तक बन गई। रुड़की शहर जो राजपूतों ने बसाया था में आसपास के ग्रामीण क्षेत्र से विशेष रूप से वैश्य समाज के जिम्मेदार, सुशिक्षित, संपन्न लोग रुड़की में आकर बस गए थे। गत 40 वर्ष पहले मैं रुड़की में आया और मेरा जीवन सफर यहां एक साप्ताहिक अखबार में नौकरी से शुरू हुआ इससे पूर्व रुड़की एक सुव्यवस्थित शहर था । इन चार दशकों में यहां नोट, वोट, सपोर्ट ने इस शहर का पूरा भूगोल बदल दिया । यहां सट्टा हुआ, जर जोरू जमीन को लेकर हत्याएं हुई, अपराध हुए तो वह खुले भी । अपराधियों पर कानूनी कार्रवाई भी हुई। अवैध धंधों में लिप्त सफेदपोश माफियाओं के चेहरे बेनकाब हुए वे जेल भी गए। मैंने स्वयं ऐसी घटनाओं को नजदीक से देखा भी है और उनकी स्वयं कवरेज भी की है । अपराध तो हमेशा हुए हैं और होते रहेंगे। अपराध विहीन समाज की तो हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। मैंने वर्ष 1980 से राजनीतिक व सामाजिक नेताओं, शहर के लोगों को भी नजदीक से देखा । अब यदि हम सभी घटनाओं को अलग कर दें और 4 दशक में रुड़की के विकास पर दृष्टिपात करें तो रुड़की में अतिक्रमण को बढ़ावा किन चैयरमेनों के कार्यकाल में मिला,सब जानते हैं । यही नहीं अतिक्रमण बढ़ा तो बड़े बड़े नालों की चौड़ाई व सड़कों की चौड़ाई कम होती चली गई । गंग नहर से विद्युत मोटर द्वारा गंग नहर के पानी से जो नगर के बाजारों की गलियां सुबह सुबह साफ की जाती थी जिसका गंदा पानी जाकर सोलानी नदी में गिरता था, वह भी व्यवस्था बंद हो गई । शहर में बढ़ते अतिक्रमण पर मेरे समेत तमाम पत्रकार कलम चलाते रहे । वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2002 तक तो मैं स्वयं रुड़की से दैनिक जागरण के प्रभारी के नाते अतिक्रमण पर अनवरत लिखता रहा लेकिन शहर का अस्थाई अतिक्रमण जहां पुलिस प्रशासन के लिए मोटी कमाई का जरिया बन गया था वही स्थाई रूप से होता चला जा रहा अतिक्रमण नगरपालिका के शीर्ष पर बैठे नेताओं के लिए मोटी कमाई का जरिया बनता चला गया। शहर का भूगोल ऐसे ही चेयरमैनों के कार्यकाल में बिगड़ता चला गया । चुनाव में जिसने वोट दी या फिर जिसने सपोर्ट दी या फिर जिसने नोट दिए उसे अतिक्रमण करने से नहीं रोका गया। ऐसा होते शहरवासियों ने भी देखा है। सच्चाई यह भी है कि जब वे अतिक्रमण करा रहे थे तो शहरवासी ही तो कर रहे थे वह नाले पर था या फिर सड़क पर या फिर नगरपालिका की संपत्ति पर। यही स्थाई अतिक्रमण जहां एक और नगर के भूगोल को बदलता चला गया वहीं जलभराव की एक ऐसी लाइलाज बीमारी उपहार में दे गया जिसका इलाज बड़े ऑपरेशन से ही संभव है या फिर मास्टर प्लान से । ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति जनता को भी दिखानी होगी और जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ शासन को भी ।‌नगर के उन उच्च शिक्षा प्राप्त, संपन्न जिम्मेदार लोगों के चेयरमैन रहते रुड़की को ऐसे हालातों का सामना करना पड़ रहा है । तो ऐसे जनप्रतिनिधियों के लिए यही कहावत चरितार्थ होगी कि “लेखा ज्यों का त्यों, कुनबा डूबा क्यों”। अब शहर के लोगों को कोहनी मार और अडंगी मार नेताओं के साथ साथ” डंडी मार” नेताओं की भी पहचान करनी होगी।

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