सुभाष वर्मा ने विपरीत परिस्थितियों में जीता जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव, शुरू से ही इरादा रहा पक्का तो मिली सफलता

रुड़की । सुभाष वर्मा ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता है। लेकिन उनका शुरू से ही पक्का इरादा रहा जिस कारण उन्हें सफलता मिली। बबली चौधरी ने जब मानव पूर्व जिला पंचायत सदस्य सीट खाली की थी तो तब सुभाष वर्मा, सुशील चौधरी ,सुबोध राकेश और प्रदीप चौधरी पर न जाने कितने तंज कसे गए थे। कहा तो यहां तक गया था कि पहले यह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव ही जीत ले । अध्यक्ष बनना तो बहुत दूर की बात है। लेकिन मैं तो सुभाष वर्मा का इरादा डिगा और न ही सुबोध राकेश सुशील चौधरी और प्रदीप चौधरी का मिशन। पहले इनके द्वारा मानक पूर्व जिला पंचायत सदस्य का उप चुनाव जीता गया । यह बात लगे कि मुकाबला काफी कड़ा रहा। इसके बाद जिला पंचायत की सियासत में तमाम उतार-चढ़ाव आए और हर बार यही कहा गया कि चौधरी सुभाष वर्मा जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएंगे। क्योंकि सबका मानना था कि सुभाष वर्मा जो जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ने का इरादा बनाए हुए है तो उसके पीछे पूर्व विधायक मोहम्मद शहजाद की ताकत ही है। लगे हाथ बात यह भी हो रही थी कि पूर्व विधायक मोहम्मद शहजाद का कुछ पता नहीं कि वह जिला पंचायत की सियासत में कब क्या निर्णय ले ले। हुआ भी यही। जैसे ही जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव का डंका बजा तो मोहम्मद शहजाद ,सुभाष वर्मा को बीच मैदान छोड़कर चले गए। यह स्थिति सुभाष वर्मा के लिए ही नहीं बल्कि सुशील चौधरी ,सुबोध राकेश और प्रदीप चौधरी के लिए भी बड़ी ही चिंता में डाल देने वाली रही। राजनीतिक जानकार भी मानना है कि यदि सुशील चौधरी, प्रदीप चौधरी, सुबोध राकेश का अन्य युवाओं के साथ गहरा तालमेल न होता तो निश्चित रूप से शहजाद के द्वारा जो वर्मा को बीच मैदान में छोड़ा गया था तो उनका जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचना कतई भी संभव नहीं था। क्योंकि सुभाष वर्मा भी पूर्व विधायक के भरोसे ही अध्यक्ष पद पर ताल ठोक रहे थे। जिला पंचायत की राजनीति के जानकार भी उस समय यही कहने लगे थे कि जब शहजाद ही साथ नहीं है तो सुभाष वर्मा भला चुनाव कैसे लड़ पाएंगे। लेकिन सुभाष वर्मा ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी हौसला नहीं छोड़ा। वह लगातार प्रयास करते रहे और सुशील चौधरी प्रदीप चौधरी व है सुबोध राकेश के भरोसे दिनों दिन आगे बढ़ते गए। पहले चरण में जयंत चौहान मुकर्रम अंसारी विजेंद्र चौधरी साथ आए तो दूसरे चरण में विजय सैनी ,राजीव सैनी, भूप सिंह साथ खड़े हो गए। जब तीसरा चरण शुरू हुआ तो इनके साथ और कई साथी हम रहा बन गए। इसके बाद भी चौधरी सुभाष वर्मा के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने का रास्ता सुलभ नहीं हुआ। क्योंकि मोहम्मद शहजाद और चौधरी राजेंद्र ने और तमाम राजनीतिक बाधाएं जो उत्पन्न कर दी थी। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का निर्णायक दौर शुरू हुआ तो सुभाष वर्मा के अनुकूल समीकरण बनते चले गए। लेकिन परिस्थितियां फिर भी काफी जटिल रही। क्योंकि जिला पंचायत का पहला चुनाव ऐसा देखा गया है । जिसमें की पूरी पारदर्शिता रही है। अन्यथा पूर्व के चुनाव में यदि किसी जिला पंचायत सदस्य ने वोट नहीं दिया तो उसके खिलाफ रातों-रात मुकदमा दर्ज करा दिया गया और उनके परिजनों को पूछताछ के बहाने कोतवाली बैठा लिया गया। अब से पहले के सभी चुनाव में ऐसा ही हुआ है। यह पहला चुनाव हुआ है जिसमें कि किसी जिला पंचायत सदस्य के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। किसी को प्रताड़ित नहीं किया गया है । यह बात अलग है कि राजनीतिक कारणों के चलते आरोप चाहे कोई भी लगा दे। लेकिन सत्यता है कि यदि सरकार चाहती तो पांच छ्ह और वोट खुद ब खुद ही सुभाष वर्मा की ओर चली आती। अब देखिए कि सुभाष वर्मा के सभी जिला पंचायत सदस्यों को हेल्पर की सुविधा तक नहीं दी गई। पूर्व के चुनाव में देखा गया कि सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशी ने जितने भी हेल्पर चाहे उतने ही हेल्पर उनके समर्थक जिला पंचायत सदस्यों को मिले। सुरक्षा की दृष्टि से गनर दिए गए। राम के जानकार मान रहे हैं कि सुभाष वर्मा ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में चुनाव जीता है। सीमित संसाधनों के चलते मोहम्मद शहजाद और राजेंद्र चौधरी के खिलाफ उनके लिए यह चुनाव जीत पाना इतना आसान नहीं था। राजनीतिक जानकार यह भी मान रहे हैं कि सुभाष वर्मा को जिला पंचायत सदस्यों का तो पूरा सहयोग मिला लेकिन जिले के बड़े नेताओं की ओर से उन्हें बहुत अधिक सहयोग नहीं मिल पाया। युवाओं की टीम ने ही उन्हें मुकाम तक पहुंचाया। खानपुर विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के अलावा ऐसा कोई नेता नहीं था जो कि खुलकर सुभाष वर्मा के समर्थन में आया हो। मात्र युवाओं की टीम ही लक्ष्य भेदने पर लगी रही और आज भेज भी दिया। चुनावी समीक्षक भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि जिस तरह से मोहम्मद शहजाद और राजेंद्र चौधरी जिला पंचायत की सियासत को कानूनी दांवपेच में उलझाते हैं ऐसे में किसी को भी सफलता मिलना आसान काम नहीं। लेकिन सुभाष वर्मा ने इनके द्वारा बोले गए सभी जाल को कुत्रा और तमाम विपरीत परिस्थितियों में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी हासिल की।मानकपुर जिला पंचायत के उपचुनाव के दौरान जो लोग कह रहे थे कि सुभाष वर्मा किसी भी कीमत पर अध्यक्ष नहीं बन सकते अब वही लोग इनके इरादे की तारीफ कर रहे हैं।

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