देहरादून । उत्तराखंड की राजनीति में हरीश रावत इस वक्त दो मोर्चों पर एक साथ जूझते दिख रहे हैं। एक मोर्चा तो यह है कि वह किसी भी तरह से केंद्रीय नेतृत्व से यह गारंटी चाहते हैं कि राज्य में कांग्रेस बहुमत में आती है तो मुख्यमंत्री वही होंगे। इसी कोशिश में पिछले दिनों उन्होंने वाया सोशल मीडिया अपना जो दर्द बयां किया, उसको लेकर पार्टी में उथल-पुथल रही। उनका दूसरा मोर्चा अपने बेटे-बेटी का टिकट पक्का कराना है।
हरीश रावत ने फेसबुक पर यह लिखकर इशारा भी कर दिया है, ‘अब थोड़ा मुझे अपने बेटे-बेटियों, जिन्होंने मेरी ही गलतियों वश राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिए या मेरी ढिलाई समझ लीजिए, प्रोत्साहन तो मैंने कभी दिया नहीं, लेकिन मेरी ढिलाई के कारण वे भी इस काम में लग गए, उनकी चिंता होती है, क्योंकि उनके प्रति भी मेरा दायित्व है।’
कॉमन पॉलिसी की मांग
यह मोर्चा ज्यादा कठिन है। एक मुश्किल तो यह है कि हरीश रावत के अलावा भी कई वरिष्ठ नेता अपने परिवारजनों के लिए टिकट चाह रहे हैं। नेतृत्व की तरफ से कहा गया है कि इसके लिए हमें कोई कॉमन पॉलिसी बनानी होगी।
तीन-तीन टिकट पर उठ रहे सवाल
किसी के परिवार से टिकट दें और किसी को न दें, यह उचित नहीं। हरीश रावत के बेटे-बेटी के टिकट का विरोध इसलिए ज्यादा है कि विरोधी खेमे का तर्क है कि जो शख्स मुख्यमंत्री पद का दावेदार है, उसके परिवार को तीन-तीन टिकट कुछ ज्यादा हो जाएगा। इससे पार्टी में असंतोष भी उत्पन्न हो सकता है और भाजपा इसका लाभ उठाने में कामयाब भी हो सकती हैं।
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