रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने कस्तूरबा भवन और जल संसाधन विकास और प्रबंधन विभाग में प्रदर्शन इकाइयों (डेमोंस्ट्रेशन यूनिट्स) के रूप में और संस्थान में जागरूकता पैदा करने के लिए कई रेनवॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम्स स्थापित किए हैं। संस्थान ने चार स्थापित मॉडलों जैसे आरडब्ल्यूएच-रिचार्ज, आरडब्ल्यूएच-स्टोरेज, रिचार्ज शाफ्ट, रिचार्ज पिट का उपयोग करके आरडब्ल्यूएच और स्टॉर्मवाटर मैनेजमेंट में शामिल विभिन्न प्रकार की तकनीकों का प्रदर्शन करने के लिए परिसर में उद्घाटन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआईटी रुड़की के निदेशक और ग्रीन कमेटी के अध्यक्ष प्रोफेसर अजीत के चतुर्वेदी ने की।जल संचयन (रेनवॉटर हार्वेस्टिंग) तकनीक में किसी भी भवन की छत के पानी को इकठ्ठा करके ट्यूबवेल के जरिए जमीन में दोबारा पहुंचाया जाता है। कस्तूरबा भवन में लगाए गए मॉडल से हर साल 7.5 लाख लीटर पानी दोबारा जमीन में पहुंचाया जाता है। वर्षा जल के भंडारण के लिए रूफ-टॉप रेनवॉटर हार्वेस्टिंग मॉडल डब्ल्यूआरडीएम विभाग के पीछे स्थापित किया गया है, जहां 3.5 लाख लीटर बारिश के पानी के इकठ्ठा होने की उम्मीद है। इसके अलावा डब्ल्यूआरडीएम विभाग के पीछे रिचार्ज पिट्स और रिचार्ज शाफ्ट मॉडल भी बनाए गए हैं। यह रिचार्जिंग की अप्रत्यक्ष विधि को प्रदर्शित करते हैं।रेन वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर का उद्घाटन करते हुए, आईआईटी रुड़की के निदेशक और ग्रीन कमेटी के अध्यक्ष प्रो. अजीत के चतुर्वेदी ने कहा, “वर्षा जल संचयन, बारिश के पानी को बहने देने के बजाय उसे जमा करके उसका भंडारण करने की तकनीक है। कस्तूरबा भवन में और WRDM में स्थापित किए गए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर आईआईटी रूड़की के वर्षा जल को बहने देने के बजाये उसका संग्रहण करके पर्यावरण संरक्षण में अपनी भूमिका निभाने के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करता है।”आईआईटी रुड़की के जल संसाधन विकास और प्रबंधन विभाग के प्रो. दीपक खरे ने रेनवॉटर हार्वेस्टिंग मेथड का अवलोकन प्रदान करते हुए कहा, “रूफटॉप हार्वेस्टिंग में, छत को कैचमेंट बनाया जाता है, यानि बारिश के पानी को बिल्डिंग की छत पर इकठ्ठा किया जाता है, जिसके बाद इस पानी को या तो एक टैंक में संग्रहीत किया जा सकता है या कृत्रिम पुनर्भरण प्रणाली की ओर मोड़ा जा सकता है। यह विधि कम खर्चीली और बहुत प्रभावी है और यदि इसे ठीक से लागू किया जाए तो यह क्षेत्र के भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करता है।”हरित समिति के संयोजक तथा आईआईटी रुड़की के जल और नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के प्रो अरुण कुमार ने वर्षा जल संचयन विधि (रेनवॉटर हार्वेस्टिंग मेथड) की स्थापना की पृष्ठभूमि बताते हुए कहा, “संस्थान द्वारा जल संरक्षण और वॉटर फुटप्रिंट को कम करने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। ‘बारिश को पकड़ों’ इस के नारे के साथ यह तरीका बहुत लोकप्रिय हो रहा है।”
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