लोकसभा अध्यक्ष ने विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 79वें सम्मेलन का किया उद्घाटन, कहा सभा में वाद-विवाद, असहमति और चर्चा होनी चाहिए
देहरादून । लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने देहरादून में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के 79वें सम्मेलन का उद्घाटन किया। अपने उद्घाटन भाषण में, श्री बिरला ने कहा कि यह सम्मेलन पीठासीन अधिकारियों को देश में लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से अनुभवों और नए विचारों को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इस बात पर जोर देते हुए कि सभा में वाद-विवाद, असहमति और चर्चा होनी चाहिए परन्तु ‘व्यवधान नहीं’ होना चाहिए, उन्होंने कहा कि सभा का कार्य सुचारु रूप से चलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विरोध करते समय भी गतिरोध नहीं होना चाहिए; यही लोकतंत्र की गरिमा और परंपरा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि गतिरोध से लोकतंत्र की मूल भावना आहत होती है, क्योंकि इससे सदस्यों के अधिकारों का हनन होता है। इस संदर्भ में, उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि 17वीं लोक सभा के पहले सत्र के दौरान, व्यवधानों और गतिरोधों के कारण समय की जरा भी बर्बादी नहीं हुई थी और 37 बैठकों में 35 विधेयकों को पारित किया गया था जिससे सभा की उत्पादकता में वृद्धि हुई थी। इसी प्रकार, दूसरा सत्र भी इसी प्रकार उत्पादक रहा था और दोनों सत्रों में नव-निर्वाचित सदस्यों को सभा में मामलों को उठाने के लिए अधिकाधिक अवसर प्रदान किए गए थे। श्री बिरला ने कहा कि हालांकि विधानमंडल अपने कार्यकरण के संबंध में स्वतंत्र हैं, फिर भी समय की मांग है कि विधानमंडलों का कार्यकरण एक समान हो । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि विधानमंडलों को लोगों की आकांक्षाओं और आस्था का मंदिर माना जाता है । इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी संस्थाओं में लोगों के विश्वास को सुदृढ़ किया जाए और इसे और मजबूत बनाया जाए । श्री बिरला ने यह भी कहा कि वर्ष 2021 में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे और इस विशेष अवसर पर यह सुनिश्चित करने के सभी संभव प्रयास किए जाने चाहिए कि विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही को पूरी तरह सुनिश्चित किया जाए । इस बात का उल्लेख करते हुए कि पीठासीन अधिकारियों की दिल्ली में हुई बैठक के दौरान 28 अगस्त 2019 को उन्होंने निम्नलिखित तीन समितियों का गठन किया था, श्री बिरला ने प्रतिनिधियों को जानकारी दी कि इन समितियों के प्रतिवेदन इस सम्मेलन के दौरान सभापटल पर रखे जाएंगे : (i)विधान मंडलों के कार्यकरण में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग का मूल्यांंकन करने तथा सुझाव देने हेतु समिति;(ii)सभा के सुचारु कार्यकरण संबंधी मामले पर विचार करने संबंधी समिति; और (III)विधान मंडल सचिवालयों की वित्तीपय स्वायत्तता के मामले की जांच हेतु समिति । उन्होने अपने साथी पीठासीन अधिकारियों से इन समितियों की सिफ़ारिशों को अपने-अपने विधानमंडलों में लागू करने का आग्रह किया। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पीठासीन अधिकारी सुदृढ़ और सशक्त लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह उल्लेख करते हुए कि अध्यक्ष कक्षा अध्यापकों या अभिभावकों के रूप में कार्य करते हैं, उन्होंने कहा कि सभा का सुचारू रूप से संचालन करना अध्यक्ष का कर्तव्य और दायित्व है। इस संबंध में, उन्होंने कहा कि 17 वीं लोक सभा के दौरान, बजट सत्र में लोक सभा की कार्य-उत्पादकता 135% और शीतकालीन सत्र में 116% थी, जिससे स्पष्ट होता है कि लोक सभा अध्यक्ष ने सभा में कितनी कुशलता से कार्यवाही का संचालन किया है। इस संदर्भ में, उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष भी अपनी भूमिका कुशलता से निभा रहे हैं। श्री रावत ने कहा कि, कई अवसरों पर विपक्ष अध्यक्ष पर दबाव बनाता है जिससे असहज स्थिति पैदा होती है। इसके बावजूद, अध्यक्ष के लिए संयम, शालीनता, कड़ाई और अनुशासन के गुणों का सामंजस्य बनाना एक कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि जितना अधिक हम सार्वजनिक मुद्दों पर शोध और विचार-विमर्श में समय लगाएंगे, उतना ही अधिक सार्थक परिणाम मिलेगा। श्री रावत ने जोर देकर कहा कि यदि विधान सभा संसद के प्रदर्शन का अनुकरण करती है, तो ‘न्यू इंडिया’ का सपना जल्द ही पूरा होगा। उन्होंने मीडिया से आग्रह किया कि वे सभा में होने वाली उद्देश्यपूर्ण चर्चा को कवर करें और रिपोर्ट करें, जिसका दूरगामी प्रभाव होगा। स्वागत भाषण देते हुए, उत्तराखंड विधानसभा के अध्यक्ष, श्री प्रेमचंद अग्रवाल ने इस बात पर बल दिया कि संसद और राज्य विधानसभाएं सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्थायें हैं। उनका जनादेश कार्यपालिका पर नज़र रखना और लोगों की आवाज़ को मुखर करना है। इन्हीं निकायों के माध्यम से आम लोगों की आकांक्षाओं और इच्छाओं को अभिव्यक्ति मिलती है, जिससे यह सिद्ध होता है कि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च है। श्री अग्रवाल ने इस बात पर बल दिया कि राज्य विधानसभा के सदस्यों को उन लोगों के प्रति ईमानदार रहना चाहिए जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों का पूरी ईमानदारी के साथ निर्वहन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह संसदीय लोकतंत्र की सफलता के मूल तत्व हैं। श्री अग्रवाल ने यह भी कहा कि राजनीति कोई व्यवसाय नहीं है, बल्कि एक मिशन है और लोकतंत्र की सफलता के लिए सक्रिय वार्तालाप और चर्चा बहुत महत्वपूर्ण है। श्री अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि विधायी कार्य के सुचारू और व्यवस्थित संचालन के लिए पीठासीन अधिकारियों के साथ विपक्ष का सक्रिय योगदान आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि एक पीठासीन अधिकारी के रूप में, यह अत्यंत संतोषजनक होता है जब कोई भी सदस्य यह दावा नहीं करे कि पीठासीन अधिकारी द्वारा उसके साथ पक्षपात किया गया है | उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप विधानमंडलों के बीच सहयोग और वार्ता के नए मार्ग खुलेंगे। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए, उत्तराखंड विधान सभा के उपाध्यक्ष, श्री रघुनाथ सिंह चौहान ने कहा कि इस सम्मेलन में प्रतिनिधियों की भागीदारी से, उनके सामूहिक ज्ञान और विवेक से विधानमंडल सुदृढ होंगे। उन्होंने इस बात का विश्वास जताया कि देवभूमि में आयोजित इस सम्मेलन में की गई सिफारिशें संसदीय इतिहास में मील का पत्थर साबित होंगी।