खेतों में धान की फसल को बर्बाद कर देता है ये खतरनाक वायरस, बचाव के लिए अपनाएं ये तरीका

साल 2022 में धान की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान ‘सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ के चलते हुआ था। इस वायरस के कारण धान के पौधे बौने रह जाते हैं। इसका सीधा असर धान उत्पादन पर पड़ता है। पिछले साल बिल्कुल बौने पौधे और उनकी संख्या अलग किस्मों में 5 से लेकर के 20 प्रतिशत तक पाई गई थी।

शुरुआती महीने में ही दिख जाता है इस रोग का असर

‘सदर्न राइस ब्लैक-स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस’ एक से दूसरे पौधे में फैलता है। 25 से 30 दिन की फसल पर इसका असर ज्यादा दिखता है। जुलाई महीने में ही अधिकतर किसानों ने धान की बुवाई की है। ऐसे में इन दिनों धान की फसल को बौना रोग लगने की सबसे अधिक संभावना होती है।CAR फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए समय-समय पर सोशल मीडिया के जरिए किसानों को जानकारी भी देता है। संस्थान की तरफ से धान की फसल को बौनापन से बचाने की भी सलाह दी जाती रही है। अगर वक्त रहते हुए किसान धान के पौधों में बौनेपन के लक्षणों को पहचान कर सर्तकता से कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा बताए गए उपायों को अपनाता है तो वह अपनी फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है।

फसल को बौनापन रोग से यूं बचाएं

यह समस्या खरपतवारों के आंतक और पोषक तत्वों की कमी के कारण आती है। जब भी धान के पौधे बुवाई के शुरुआती महीने में ही पीले पड़ने शुरू हो जाएं तो समझें कि आपकी फसल बौनेपन का शिकार होना शुरू हो गई है। ऐसे में अपनी धान की फसल लगाने के बाद भी निराई गुड़ाई जारी रखें। इससे पौधों में ऑक्सीजन का संचार होगा और पौधे सुरक्षित रहेंगे। पीले पौधे देखने पर उखाड़ कर फेंक दें। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो आपकी पूरी फसल चौपट हो सकती है।

फसल में 5 से 20 फीसदी तक पीले पौधे दिखाई दे रहे हैं तो उन्हें हटा दें। इनकी जगह धान के नए पौधे लगा दें। धान की फसल में समय-समय पर यूरिया डीएपी या जीवामृत का छिड़काव करें, ज्यादा रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल ना करें वरना पौधों को नुकसान पहुंच सकता है।

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