स्वर्ग जैसा है मां सुरकंडा का दरबार, नवरात्रि में पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व, यहां गिरा था माता सती का सिर, मां के दर्शन से ही दूर हो जाता है हर दुःख

नई टिहरी । नवरात्रि में नवदुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती है। इस मौके पर हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो 51 शक्तिपीठों में एक है। इस मंदिर को सुरकंडा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। सुरकंडा देवी का दरबार हिन्दूओं का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है, जो नवदुर्गा के रूपों में एक हैं। सुरकंडा देवी मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले के यूलिसाल गांव में है। यह मंदिर लगभग 2,757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे, उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें सती का सिर इस स्थान पर गिरा था, इसलिए इसे मंदिर को श्री सुरकंडा देवी मंदिर भी कहा जाता है। गौरतलब है कि देवी सती के शरीर का भाग जिस-जिस स्थान पर गिरे थे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। सुरकंडा देवी मंदिर में गंगा दशहरा का त्योहार मनाया जाता है, जो हर साल मई और जून के बीच आता है। नवरात्री का त्योहार भी यहां विशेष रूप से मनाया जाता है। सुरकंडा देवी का दरबार घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। दक्षिण दिशा में देहरादून और ऋ़षिकेश शहरों का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है। यह मंदिर साल में ज्यादातर समय कोहरे से ढका रहता है। बताया जाता है कि अभी जो यहां मंदिर है, उसका पुनः निर्माण किया गया है। जबकि वास्तविक मंदिर की स्थापना का समय किसी को पता नहीं है। माना जाता है कि यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है।

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