अंबे मां का चौथा स्वरूप मां कूष्माण्डा जहां रोगों को दूर कर, आयु और यश में वृद्धि करता है, कूष्माण्डा मां की आठ भुजाएं हैं, इनकी पूजा करने से सूर्य ग्रह मजबूत होता है

रुड़की । शारदीय नवरात्रि इस वर्ष केवल आठ दिन ही चलेंगे क्योंकि मां कूष्माण्डा और स्कंदमाता का पूजन एक ही दिन यानी 10 अक्टूबर को होगा। 14 अक्टूबर को कन्या पूजन के साथ नवमी मनाई जाएगी। अंबे मां का चौथा स्वरूप मां कूष्माण्डा जहां रोगों को दूर कर, आयु और यश में वृद्धि करता है। वहीं मां भगवती का पांचवा स्वरूप यानी स्कंदमाता की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वास होता है। कूष्माण्डा मां की आठ भुजाएं हैं, इनकी पूजा करने से सूर्य ग्रह मजबूत होता है, वहीं स्कंदमाता की भी अष्ट भुजाएं हैं और यह सिंह की सवारी करती हैं। मां स्कंदमाता की पूजा करने से मान-सम्मान में वृद्धि होती है, साथ ही आर्थिक पक्ष भी मजूबत होता है।

पूजा विधि: सूर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म और स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े पहनें। फिर पूजा घर की साफ-सफाई करें। अब कलश की पूजा कर कूष्माण्डा और स्कंदमाता के स्वरूपों का ध्यान करें। फिर देवी पर जल और पुष्प अर्पित करें। बाद में उन्हें धूप दिखाकर फूल, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे चढ़ाएं और भोग लगाएं। माता के मंत्रों का जाप कर सप्तशती का पाठ करें। धूप-दीपक से मां की आरती उतारें। आखिर में “सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे” इस मंत्र का जाप कर, प्रसाद वितरित करें।

कूष्माण्डा मां की कथा: पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां कूष्माण्डा का मतलब कुम्हड़ा से है। ऐसी मान्यता है मां कूष्माण्डा ने संसार को दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए अवतार लिया था। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्माण्डा नाम से जाना गया। जब सृष्टि नहीं हुई थी और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।

स्कंदमाता की कथा: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था, जिसने अपनी तपस्या से ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया था। उसने ब्रह्मदेव से अजर-अमर होने का वरदान मांगा लेकिन जब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। तब उसने सोचा कि शिव जी तपस्वी हैं, इसलिए वे कभी विवाह नहीं करेंगे। अतः यह सोचकर उसने भगवान से सिर्फ शिव के पुत्र द्वारा ही मारे जाने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया। बाद में तारकासुर ने पूरी दुनिया में आतंक मचाना शुरू कर दिाय। उसके अत्याचार से तंग होकर देवता शिव जी के पास पहुंचे और उनसे विवाह करने का अनुरोध किया। तब शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया और मां पार्वती ने कार्तिकेय को जन्म दिया। शिव जी के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने बड़े होकर तारकासुर दानव का वध किया।

मंत्र:

-ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः
-सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
-भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
-ऐं ह्री देव्यै नम:।
-या देवी सर्वभू‍तेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।
-ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
-सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
-शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

आरती:
आद्य शक्ति कहते जिन्हें, अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप॥

कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार॥

क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर मां, पीड़ा देती अपार॥
सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए॥

नवरात्रों की मां कृपा कर दो मां
नवरात्रों की मां कृपा करदो मां॥

जय मां कूष्मांडा मैया।

जय मां कूष्मांडा मैया॥

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