हरा चारा की खेती से करोड़पति बना किसान, 80 दिन में कमा रहा 50 लाख का मुनाफा, 18 महीने तक खराब भी नहीं होता यह चारा

कृषि के उत्पादन में भारत का स्थान हमेशा ही आगे रहा है, युगों-युगों से यहां के अति उपजाऊ जमीन पर तमाम फसलों की खेती हो रही है। गेहूं, धान, मक्का, गन्ना यहां की प्रमुख नकदी फसल हैं तो वही सब्जियों की खेती में भी भारत में खास मुकाम हासिल किया है, लेकिन अब यहां के किसान नवाचारों की ओर बढ़ रहे हैं। अब खेती-बाड़ी सिर्फ आजीविका कमाने का एकमात्र जरिया नहीं रहा, बल्कि और फसलों की ओर भी किसानों की रुचि विकसित हो रही है, जो अच्छा मुनाफा देने के साथ-साथ कम समय और कम खर्च में ही पैदा हो जाती है। पशु चारा भी इन्हीं फसलों में शामिल है, जिसकी बाजार में काफी मांग है तो चारों उगाने वाले किसान भी कम है, इसलिए इसका उत्पादन भी काफी कम है, लेकिन पशुपालन सेक्टर के विकास-विस्तार के चलते पशु चारे की मांग बढ़ रही है। इस मॉडल को समझते हुए मध्य प्रदेश के इटारसी के शरद वर्मा हरा चारा साइलेज की खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं। बता दें कि साधारण किसानों की तरह पहले शरद भी सब्जियों की खेती करते थे। सही लाभ न मिलने के चलते उन्होंने ​न्यूजीलैंड से हरा चारा साइलेज बनाने की नई उन्नत तकनीकों का ज्ञान हासिल किया और इटारसी से तलवाड़ा गांव में हरे चारे की खेती चालू कर दी है। आज शरद शर्मा की गिनती करोड़पति किसानों में की जाती है। इस किसान से प्रेरित होकर मध्य प्रदेश के कई किसानों ने हरा चारा साइलेज उगाना चालू कर दिया है। शरद वर्मा अपनी 100 एकड़ जमीन पर हरा चारा साइलेज उगा रहे हैं, जिसकी शुरुआत मात्र 10 एकड़ जमीन से हुई थी, लेकिन बढ़ते मुनाफे के चलते खेती का भी विस्तार हुआ। आज शरद वर्मा के खेतों का साइलेज मध्यप्रदेश के जबलपुर, भोपाल, बैतूल, हरदा, नर्मदापुरम, मुलताई की बड़ी-बड़ी डेयरी और पशुपालन यूनिट में भेजा जा रहा है. कमाल की बात है कि 75 से 80 दिनों में हरा चारा साइलेज 50 लाख का मुनाफा दे रहा है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो शरद वर्मा हरा चारा साइलेज की खेती करके 100 से ज्यादा अवॉर्ड अपने नाम करवा चुके हैं। वैसे तो शरद वर्मा ने बीए-एलएलबी की पढ़ाई की है। उनके अनुभव और ज्ञान को परखकर कृषि विभाग ने ​न्यूजीलैंड हरे चारे की खेती करने की जानकारी लेने भेजा। गूगल सर्च पर जानकारी ली तो पता चला कि इस चारे को खाने से पशु अधिक दूध देने लगते हैं और यह चारा 18 महीने तक खराब भी नहीं होता। फिर क्या डेयरी हब के तौर पर उभर रही अपनी धरती पर यह चारा उगाने का मन बनाया। फिर न्यूजीलैंड से वापस लौटते ही साइलेज की खेती चालू कर दी, कम समय में अच्छे परिणाम मिलने लगे तो तकनीक की ओर रुख किया। साल 2021 में 4 लाख रुपये की कीमत वाली एक छोटी मशीन खरीद ली। चारे की कटाई के लिए भी 2022 में एक बड़ी चारा कटाई मशीन खरीदी और चारे की पैकिंग करने की एक करोड़ की यूनिट लगाई। जिससे आज 8 लोगों को रोजगार मिल रहा है। आज शरद वर्मा इन आधुनिक तकनीकों के जरिए एक एकड़ से 100 क्विंटल हरा चारा साइलेज का उत्पादन ले रहे हैं। इसे उगाने का तरीका बड़ा ही खास है। जब मक्का के 50% दाने नरम और दूधिया अवस्था में होते हैं तो साइलेज तैयार किया जाता है।

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