प्रदीप बत्रा में कोई ऐसी खूबी तो है जो अन्य नेताओं में नहीं, जिसके दम पर उन्होंने रुड़की की पूरी लीडरशिप को परास्त कर दिया, इस बार के चुनाव में सारी लीडरशिप खड़ी थी विरोध में, लेकिन आमजन का समर्थन रहा प्रदीप बत्रा को
रुड़की । रुड़की शहर में प्रदीप बत्रा में कोई तो ऐसी खूबी है जो अन्य नेताओं में नहीं है। जिसके दम पर प्रदीप बत्रा ने इस चुनाव में भी पूरी लीडरशिप को परास्त कर दिया। क्योंकि रुड़की शहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस वर्ष 2017 के ट्रेंड पर ही चुनाव लड़ रही थी। जैसा की पिछले विधानसभा चुनाव में सारी लीडरशिप कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में खड़ी थी तो वैसे ही इस बार भी सारी की सारी लीडरशिप कांग्रेस के साथ रही। प्रदीप बत्रा अकेले ही चुनाव मैदान में थे । उनके साथ यदि ही कोई खड़ा था तो वह आम जन था। जो कि न तो मंचों पर आसीन हो रहा था और न ही कोई भाषण बाजी कर रहा था। दरअसल, प्रदीप बत्रा को इस बार के चुनाव में रोकने के लिए यहां की लीडरशिप में पूरी ताकत झोंकी है। प्रदीप बत्रा कैसे चुनाव हारे। यह सब जतन यहां की लीडरशीप ने किए। जो हो सकता था वह हथकंडा रुड़की लीडरशिप ने प्रदीप बत्रा को घेरने के लिए अपनाया। तमाम तरह के दुष्प्रचार भी किए गए और अफवाह भी फैलाई गई। कहा गया कि सारी भाजपा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की मदद कर रही है । जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं था। लेकिन इस तरह की बातें करना और रुड़की शहर की लीडरशिप द्वारा प्रदीप बत्रा के खिलाफ औछे हथकंडे अपनाना यहां के आम जन को बुरा लगा। माना जा रहा है कि जैसे जैसे रुड़की की लीडरशिप प्रदीप बत्रा के प्रति आक्रामक होती गई तो उतनी ही तेजी से आमजन का समर्थन उनको मिलता गया। आमजन खुद ही प्रदीप बत्रा की खूबियां गिनाने और लीडरशिप की आलोचना करने लगा। धीरे-धीरे कर बात प्रदीप बत्रा और लीडरशिप के व्यवहार पर आ टीकी। जैसे ही व्यवहार की बात आई तो प्रदीप बत्रा का समर्थन बहुत ही तेजी से बढ़ता चला गया। जो लोग चुनाव को लेकर चुप थे। वह भी प्रदीप बत्रा के समर्थन में आ गए आ गए। इसके बाद एक मोर्चा प्रदीप बत्रा ने संभाला तो दूसरा मोर्चा उनकी पत्नी मनीषा बत्रा ने भाजपा महिला मोर्चा की पदाधिकारियों को साथ लेकर संभाला। जैसे ही मनीषा बत्रा ने विधानसभा चुनाव को लेकर गंभीरता दिखाई तो सिटी डेवलपमेंट सोसाइटी के सभी मेंबर भी सक्रिय हो गए। फिर क्या था जिन क्षेत्रों में कांग्रेस अपने आप को मजबूत मानकर चल रही थी । उन क्षेत्रों में ही लीडरशिप को मात देने का काम शुरु हो गया। ऐसे परिवार बहुत रहें । जिनके मुखिया कांग्रेस के साथ थे तो परिवार की महिलाएं युवा सब प्रदीप बत्रा के समर्थन मैं आ गए। मनीषा बत्रा ने किसी की आलोचना नहीं की । उन्होंने सीधे बुद्धिजीवी वर्ग में वार्तालाप कर बत्रा परिवार के व्यवहार पर विधायक प्रदीप बत्रा के लिए समर्थन मांगा ।उन्हें जहां लगा कि अधिक समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मिल सकता है तो उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए वोट मांगे । जहां पर उन्हें लगा कि भाजपा के लिए वोट मांगने से काम चल सकता है तो उन्होंने फोन कर भाजपा के लिए समर्थन मांगा। जहां उन्होंने ठीक समझा वहां पर उन्होंने बत्रा परिवार द्वारा पिछले 15 साल में शहर के विकास और जनता के हितों में किए गए कार्यों का हवाला देकर समर्थन प्राप्त किया। राजनीतिक जानकार भी मान रहे हैं कि जब परिवारों को लगा कि बत्रा परिवार सीधे उनसे सहयोग की अपील कर रहा है तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है उन्हें तो वोट करना ही है तो ऐसे ही परिवार को ही वोट क्यों ना करें । जोंकि हर मौके पर उनसे जुड़ने की कोशिश में रहता है। उस लीडरशिप की अपील का क्या मतलब जो कि अचानक सक्रिय हुई है। बता दें कि प्रदीप बत्रा को घेरने के लिए जो लीडरशिप एकजुट हुई थी उसमें अधिकतर लीडर ऐसे रहे । जिनके प्रति जनता में बड़ी नाराजगी है।
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