अब सुनाई पड़ने लगेगी हर हर महादेव के उद्घोष की गूंज, धीरे-धीरे होता जा रहा है शिवमय वातावरण, चार दिन बाद जिधर देखोगे उधर नजर आएंगे शिवभक्त

राहुल चौहान, हरिद्वार । हर साल श्रावण मास में करोड़ो की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव कस्बे व शहर वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु – पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है। 4 दिन शेष है । चारों ओर शिवभक्त नजर आएंगे । हर की पेडी से शुरू होकर गंगनहर के समानांतर आस्था की धारा रहेगी । जगह-जगह आलोकिक दृश्य देखने को मिलेंगे।

  1. कांवड यात्रा

भारतीय लोगों के लिए यह शब्द बिल्कुल अनसुना नहीं होगा। सावन प्रारंभ होते ही केसरी रंग के कपड़ों में कावड़िए अपने कंधे पर कमंडल लटकाए, पहले उसमें गंगाजल भरकर लाते हैं और अपनी मन्नत के अनुसार किसी विशेष शिव मंदिर में उस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।

  1. गंगाजल

गंगाजल लाने और उससे शिवलिंग का अभिषेक करवाने तक का यह पूरा सफर पैदल और नंगे पांव किया जाता है। निश्चित तौर पर यह काम बहुत हिम्मत का है, लेकिन शिव भक्ति के सामने कोई भी मुश्किल बड़ी कहां रहती है।

  1. जलाभिषेक

पैरों में पड़ने वाले छाले ही एक बड़ी रुकावट बन जाते हैं लेकिन शिव भक्त हार कहां मानते हैं। ऐसा माना जाता है शिव का जलाभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं।

  1. शिव माह

सावन के महीने को शिव माह भी कहा जाता है, क्योंकि ये वो महीना होता है जब सारे देवता शयन करते हैं और शिव सक्रिय और जाग्रत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

  1. नियमों का पालन

कावड़ यात्रा मुश्किल है, लेकिन इस दौरान कावड़ियों को कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है जो अत्यंत आवश्यक होता है। आइए जानते हैं क्या हैं वो मुख्य नियम।

  1. नशा करना

कावड़ यात्रा शुरू करते ही कावड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है। यात्रा पूरी होने तक उस व्यक्ति को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।

  1. स्नान

बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगा सकते, इसलिए स्नान करने के बाद ही कावड़िए अपने कावड़ को छू सकते हैं।

  1. चमड़े की किसी

चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, ये सब कावड़ियों के लिए वर्जित कार्य है। इसके अलावा किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कावड़ को रखना वर्जित है।

  1. बोल बम

कावड़ ले जाने के पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करना फलदायी होता है। कावड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है।

  1. संकल्पशक्ति

इन सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है और इसके लिए कावड़ियों की संकल्पशक्ति की मजबूती अनिवार्य है।

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