केशवानन्द भारती- 1973″ के 52 वर्ष पुरे होने के उपलक्ष्य में एक गोष्ठी का आयोजन

रुड़की । रूड़की स्थित विधि संकाय, मदरहुड विश्वविद्यालय में माननीय कुलपति महोदय की पूर्व अनुमति के उपरांत एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें “केशवानन्द भारती- 1973” वाद के 52 वर्ष पुरे होने के उपलक्ष्य में इस गोष्ठी का आयोजन किया। उत्तरांचल यूनिवर्सिटी, देहरादून, से पधारे प्राचार्य अनिल कुमार दीक्षित ने बताया की यह मामला तब उठा जब केरल में एक धार्मिक संस्था के प्रमुख केशवानंद भारती ने केरल भूमि सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969 को चुनौती दी।

इस कानून में भूमि के स्वामित्व की सीमा को कम करने का प्रयास किया गया था, जिसका सीधा प्रभाव केशवानंद भारती की संस्था पर पड़ा। भारती ने तर्क दिया कि इस कानून ने उनके संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 31) का उल्लंघन किया। और साथ ही इस मामले में संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति (अनुच्छेद 368) पर भी प्रश्न उठ खड़ा किया । भारतीय इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय की 13 जजों की बेंच इस केस की सुनवाई कर रही थी। 24 अप्रैल 1973 को इस केस का फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसद द्वारा संविधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन संसद इसके मूल ढांचे को नष्ट नहीं कर सकती है, इसके कुछ उदाहरण है, लोकतंत्र, कानून का शासन, शक्तियों का पृथक्करण, और संघवाद। इन कारणों से यह केस भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

एमिटी यूनिवर्सिटी के निदेशक प्रोफेसर डॉ० ए०के० भट्ट, आईएफटीएम मुरादाबाद से आए डॉ० योगेंद्र सिंह, व अन्य शिक्षाविद् भी उपस्थित रहे जिनका धन्यवाद करते हुए विधि संकाय मदरहुड विश्वविद्यालय के डीन प्रोफेसर डॉ० जे०एस०पी० श्रीवास्तव ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य इतिहास के उस काल खंड के विषय को उजागर करना है, जिसने संविधान को देखने का एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इस महत्वपूर्ण केस में न केवल संविधान की अलग व्याख्या की बल्कि नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों को भी परिभाषित किया। इस कार्यक्रम में विधि संकाय से प्रोफेसर डॉ० नीरज मलिक, डॉ नलनीश चंद्र सिंह, डॉ संदीप कुमार, डॉ जूली गर्ग, व्यंजना सैनी, रेनू तोमर सतीश कुमार, विवेक कुमार, राहुल वर्मा, अमन सोनकर, रुद्रांश, आशी, आयुषी,व अन्य छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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