पितृ पक्ष का अंतिम दिन सर्व पितृ अमावस्या आज, इस दिन हम पृथ्वी लोक पर आए उन सभी पितरों को श्राद्ध कर्म से आत्म तृप्त करके पितृ लोक विदा करते हैं, पितर तृप्त होकर अपनी संतानों के सुख, समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देकर खुशी खुशी अपने लोक चले जाते हैं
ज्योतिषाचार्य पंडित रजनीश शास्त्री, रुड़की । पितृ पक्ष का अंतिम दिन सर्व पितृ अमावस्या या पितृ विसर्जिनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष आश्विन मास की अमावस्या तिथि को ही सर्व पितृ अमावस्या होती है। इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या 06 अक्टूबर दिन बुधवार को है। सर्व पितृ अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्व है। इसे महालया अमावस्या भी कहते हैं। सर्व पितृ अमावस्या के दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है, जिनके स्वर्गवास की तिथि मालूम नहीं होती है। इस दिन हम पृथ्वी लोक पर आए उन सभी पितरों को श्राद्ध कर्म से आत्म तृप्त करके पितृ लोक विदा करते हैं, इसलिए सर्व पितृ अमावस्या को पितृ विसर्जिनी अमावस्या कहते हैं।पितर तृप्त होकर अपनी संतानों के सुख, समृद्धि और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देकर खुशी खुशी अपने लोक चले जाते हैं। हिन्दी पचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का प्रारंभ आज 5 अक्टूबर को शाम 07 बजकर 04 मिनट से हो रहा है। इसका समापन अगले दिन 06 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 34 मिनट पर होगा। पितरों का श्राद्ध कर्म दिन में 11 बजे से लेकर दोपहर ढाई बजे तक करना उत्तम होता है। ऐसे में सर्व पितृ अमावस्या 06 अक्टूबर को है। सर्व पितृ अमावस्या के दिन अज्ञात पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है। इसके अलावा सर्व पितृ अमावस्या के दिन वे लोग भी अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं, जो किसी कारणवश अपने पितरों का श्राद्ध निश्चित तिथि पर नहीं कर पाए हैं। वे इस दिन ही अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान या श्राद्ध करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितर पूरे पितृ पक्ष में पृथ्वी लोक पर निवास करते हैं। उनको पितृ पक्ष में अपने वंश से श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान की आस रहती है। यदि वे तृप्त नहीं होते या उनका श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो वे नाराज हो सकते हैं। जिससे वे क्रोधित होकर वापस लौट जाते हैं और अपने वंश को श्राप भी दे सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिनके पितर नाराज होते हैं, उनके परिवार में सुख, समृद्धि और शांति की कमी हो सकती है। पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी पितरों को तृप्त करना श्रेष्ठ माना गया है।