कोटवाल आलमपुर सीट पर चौधरी राजेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर, हार गए तो जिला पंचायत की सियासत से बेदखल और यदि जीत गए तो कहलाएंगे बड़े सियासतकार
रुड़की । कोटवाल आलमपुर सीट पर चौधरी राजेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर है। यदि वह इस सीट से हार जाते हैं तो जिला पंचायत में उनका दखल समाप्त हो जाएगा। क्योंकि ऐसा होने पर उनके परिवार का कोई सदस्य जिला पंचायत बोर्ड में नहीं रहेगा। इसीलिए कोटवाल आलमपुर जिला पंचायत सदस्य सीट का उपचुनाव चौधरी परिवार के लिए विशेष माना जा रहा है। हालांकि यह सीट चौधरी राजेंद्र सिंह की भाभी सविता चौधरी की बर्खास्तगी के बाद ही रिक्त हुई है। इसी कारण इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है। इसमें कहीं कोई संदेह नहीं कि यदि चौधरी राजेंद्र सिंह के परिवार का कोई सदस्य कोटवाल आलमपुर सीट से जीत जाता है तो निश्चित रूप से उन्हें राजनीति का बड़ा खिलाड़ी माना जाएगा। वैसे भी चौधरी राजेंद्र सिंह जिला पंचायत की सियासत के बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं । राज्य गठन से पहले भी और राज्य गठन के बाद भी। जिला पंचायत बोर्ड में चौधरी राजेंद्र सिंह का पूरा दखल रहा। वैसे तो उन्होंने कभी विरोधी खेमे का अध्यक्ष नहीं बनने दिया ।यदि कोई अध्यक्ष उनकी मर्जी के खिलाफ बन भी गया तो उसे बहुत दिनों तक चलने नहीं दिया। यह बात अलग है कि कई बार ऐसे मौके आए जिसमें चौधरी राजेंद्र सिंह परिवार का एक भी जिला पंचायत सदस्य नहीं जीता। सारे के सारे चुनाव हार गए। अब मानकपुर के बाद कोटवाल आलमपुर सीट पर चुनाव हो रहा है। मानकपुर आदमपुर सीट पर पिछले साल चुनाव तब हुआ था जब चौधरी राजेंद्र सिंह को घेरने के लिए इस सीट से बबली चौधरी ने सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया था । तभी से जिला पंचायत की सियासत में उठापटक चल रही है। उसी का नतीजा रहा कि विभिन्न जांचों की रिपोर्ट आने के बाद चौधरी राजेंद्र सिंह की भाभी सविता चौधरी को शासन ने बर्खास्त किया। चुनाव कोटवाल आलमपुर सीट पर जो चुनावी बिसात बिछ रही है कमोबेश वह मानकपुर जिला पंचायत सीट के जैसी ही है। मानकपुर जिला पंचायत सदस्य सीट पर भी चौधरी राजेंद्र सिंह बनाम अन्य के बीच मुकाबला हुआ था ।हालांकि वहां पर चौधरी राजेंद्र सिंह को कांग्रेस विधायक ममता राकेश वह अन्य कांग्रेस नेताओं का समर्थन प्राप्त हुआ था। अब चौधरी राजेंद्र सिंह बहुजन समाज पार्टी में है। इसलिए उन्हें कांग्रेस का समर्थन मिलने की संभावना बहुत कम है। लेकिन बहुजन समाज पार्टी में होने के कारण उन्हें दलित वोट बहुत अधिक मिलने की संभावना रहेगी ।यदि कोई दलित प्रत्याशी मैदान में ना आया। इसमें भी एक समीकरण यह भी है कि यदि कांग्रेस ने अपना कोई मजबूत प्रत्याशी चुनाव में नहीं उतारा तो निश्चित रूप से इस सीट पर भाजपा बनाम चौधरी राजेंद्र सिंह के बीच लड़ाई होगी। माना जा रहा है कि इसीलिए चौधरी राजेंद्र सिंह के करीबी लोग कांग्रेस के नेताओं से बराबर संपर्क बनाए हुए हैं और वह उन्हें इस बात के लिए राजी कर रहे हैं कि उपचुनाव में कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं उतारा जाए। भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले इस उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को ही अन्य सभी दलों का समर्थन मिले। अब देखना यह है कि कांग्रेस नेता कोटवाल आलमपुर जिला पंचायत सदस्य सीट के उपचुनाव में चौधरी राजेंद्र सिंह के समर्थन में खड़े होते हैं या फिर तटस्थ रहते हैं। कोंग्रेस अपना कोई उम्मीदवार उतारती है। बहरहाल इस सीट के चुनाव परिणाम से चौधरी राजेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है ।समझा जा रहा है कि इसीलिए चौधरी के समर्थक अपने चुनावी जमीन को पुख्ता करने में लगे हैं । वह लगातार बैठकें कर रहे हैं। साथ ही सुभाष वर्मा खेमा कोटवाल आलमपुर सीट पर चौधरी राजेद्र सिंह के समर्थकों की तैयारियों पर करीबी निगाह रखे हुए हैं। सुभाष वर्मा खेमा पूर्व प्रधान सुरेंद्र सिंह को मैदान में उतारने की तैयारी कर चुका है। जिससे कि चुनावी मुकाबला काफी कड़ा होने के आसार हैं। अभी तक 3 प्रत्याशियों द्वारा नामांकन पत्र खरीदे गए हैं।