बी डी इंटर कॉलेज भगवानपुर में भारत विकास परिषद की ओर से सामूहिक वंदे मातरम एवं देशभक्ति गीत गायन समारोह का आयोजन

भगवानपुर । आज बी डी इंटर कॉलेज, भगवानपुर हरिद्वार में भारत विकास परिषद की ओर से सामूहिक वंदे मातरम एवं देशभक्ति गीत गायन समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बोलते हुए समारोह के मुख्य अतिथि क्षेत्रीय सचिव, एन सी आर डॉ सत्येंद्र मित्तल ने कहा कि आज भारत की साख एवं लोकप्रियता विश्व में बढ़ रही है लेकिन देश विरोधी ताकतों को यह पसंद नहीं आ रहा है।राष्ट्र विरोधी ताकतें एवं कुछ स्वार्थी एवं मौकापरस्त राजनीतिज्ञ भारतीय जनमानस को जाति,धर्म एवं संप्रदाय तथा क्षेत्र,भाषा एवं मजहब के नाम पर विभाजित करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। ऐसे समय में जब विदेशी ताकते भारत की बढ़ती साथ एवं विश्वसनीयता को कुछ स्वार्थी राजनितियों के माध्यम से हमारे समाज को विभाजित करना चाहती हैं।

ऐसे समय में हमें बंकिम चंद्र चटर्जी की याद आना स्वाभाविक है, जिन्होंने अपने विचारों से,लेखनी से एवं गीतों से जनमानस में देश प्रेम एवं राष्ट्रवाद का बीज बोया था।*बंकिम बाबू ने अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से धर्म को देशभक्ति में तथा देशभक्ति को धर्म में बदल दिया था। बंकिम बाबू कहते थे कि देशभक्ति से बड़ा कोई धर्म नहीं है।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में पधारे दधीचि देहदान समिति,देहरादून के अध्यक्ष डॉ मुकेश गोयल ने कहा कि जब हमारा देश गुलाम था तथा हमारे देश पर अंग्रेजों का शासन था तब अंग्रेजी शासको ने 1870 से 80 के दशक में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को खुश करने के लिए सरकारी समारोह में गॉड सेव द क्वीन गीत अनिवार्य कर दिया था।अपने सरस्वती वंदना के स्थान पर गॉड सेव द क्वीन*l गीत से डिप्टी कलेक्टर के पद पर तैनात बंकिम चंद्र चटर्जी को बहुत ठेस पहुंची तब बंकिम बाबू ने इस गीत के विकल्प के तौर पर बंगाल के कातल गांव में 7 नवंबर 1876 को वंदे मातरम गीत की रचना की तथा यह गीत 1882 में बंकिम बाबू के उपन्यास आनंद मठ में सर्वप्रथम प्रकाशित हुआ। इस गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बंगाली भाषा में है। छात्रों को संबोधित करते हुए डॉ गोयल ने बताया कि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को 1896 के कोलकाता अधिवेशन में गुरुदेव रविंदनाथ टैगोर ने सर्वप्रथम गाया था। सन 1905 के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरला देवी चौधरी द्वारा स्वर दिया गया तथा दिसंबर 1905 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में वंदे मातरम को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया गया तथा बंग भंग आंदोलन में वंदे मातरम राष्ट्रीय नारा बन गया। वंदे मातरम को 24 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान में राष्ट्रगीत का दर्जा मिला तथा अरविंद घोष ने इस गीत का अंग्रेजी में और डॉ आरिफ मोहम्मद खान ने उर्दू में अनुवाद किया। एक सर्वे के अनुसार वंदे मातरम दुनिया का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है। भारत विकास परिषद देहरादून के अध्यक्ष तथा बी डी इंटर कॉलेज भगवानपुर के प्रधानाचार्य संजय गर्ग ने कहा कि यह दो शब्द वंदे मातरम अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों पर भारी पड़े यह दो शब्द अंग्रेजों के विरोध का प्रतीक बन गए। देश की आजादी के समय खेत में किसान,सड़क पर नौजवान तथा सरहद पर जवान सबके मुंह पर एक ही नारा वंदे मातरम होता था । गर्ग ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में वंदे मातरम गीत का ऐतिहासिक महत्व है तिरंगा फहराने पर अंग्रेजों की गोली का शिकार होने वाली मातंगिनी हजारा की जुबान पर आखिरी शब्द वंदे मातरम थे। इसी प्रकार 1907 में देश के बाहर जर्मनी में भीकाजी कामा ने जो तिरंगा फहराया था उस पर वंदे मातरम लिखा था। 8 दिसंबर 1930 को कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में भारतीयों के साथ जेलों में मानवीय व्यवहार करने वाले कोलकाता के अंग्रेज जेलर सिंपसन को गोली मारने वाले दिनेश गुप्ता को जब 7 जुलाई 1931 को फांसी दी गई तो उन्होंने फांसी के फंदे को वंदे मातरम कह कर चूमा। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व राज्य मंत्री उत्तराखंड सरकार डॉ नरेंद्र सिंह, भारत विकास परिषद उत्तराखंड पश्चिम प्रांत की प्रांतीय अध्यक्ष श्रीमती निशा अग्रवाल,उपाध्यक्ष श्रीमती मनीषा सिंघल,आर एन आई इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य अशोक कुमार रतूड़ी बी डी इंटर कॉलेज की पूर्व प्रधानाचार्य श्रीमती सुदेश अरोड़ा, संजय पाल,विजय त्यागी, नेत्रपाल,निखिल अग्रवाल रजत बहुखंडी,सुधीर सैनी, अनुदीप, ललिता, पारुल शर्मा, पारुल सैनी, निधि, अर्चना पाल,रितु वर्मा,चारू पंत,आरती त्यागी, शालिनी मणी,अमरीश चौहान,धनंजय,सुदेश राकेश, सैयद त्यागी,बृजमोहन, रोहित हर्षित आज उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल एवं सुंदर संचालन कल्पना सैनी ने किया।

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