गन्ने को लेकर सियासत, किसान परेशान, तमाम संगठन पर नहीं करा पाते समय से भुगतान, भाजपा कांग्रेस के किसान प्रकोष्ठ मात्र दिखावे के
रुड़की । गन्ने को लेकर हो रही सियासत से किसान को कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। तमाम किसान संगठन हैं लेकिन किसानों को समय से गन्ने का भुगतान नहीं हो पा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है किसान संगठनों में खींचतान ही है। चीनी मिल प्रबंधन किसान संगठनों के बीच की खींचतान का लाभ ही उठा रहा है । क्योंकि एक किसान संगठन यदि गन्ना भुगतान जल्द कराने की मांग करता है तो दूसरा किसान संगठन उसमें कोई ना कोई गतिरोध उत्पन्न इसलिए कर देता है ताकि उसकी भी पूछ बनी रहे। इस बीच कुछ संगठन ऐसे भी हैं जो कि गन्ना भुगतान को लेकर होने वाले आंदोलनों को भुनाने से भी नहीं चूकते। जैसे उन्हें मौका मिलता है तो वह चीनी मिल प्रबंधकों से आपसी समझदारी कायम कर लेते हैं। पर किसानों के बीच उनकी किरकिरी न हो । इसके लिए समय-समय पर बैठक व धरने प्रदर्शन करते रहते हैं। इस बीच दिलचस्प बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल गन्ना बकाया भुगतान को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर नहीं रहता। हालांकि भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस के पास अपने किसान प्रकोष्ठ है । जिसमें भारतीय जनता पार्टी के पास भाजपा किसान मोर्चा तो कांग्रेस के पास किसान कांग्रेस संगठन है। लेकिन इन दोनों प्रमुख पार्टियों के किसान प्रकोष्ठ मात्र दिखावे के ही हैं । पिछले 1 साल पर नजर डाले तो न तो भाजपा किसान मोर्चा ने कभी किसानों के हितों के लिए संघर्ष किया और न ही किसान कांग्रेस ने एक बार भी ऐसा कोई आंदोलन नहीं चलाया। जिससे कि किसान को लाभ पहुंचा हो। यहां तक कि गन्ना भुगतान के संबंध में भी दोनों पार्टियों के किसान प्रकोष्ठ ने कभी निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ी। इसी का नतीजा है कि शासन स्तर पर कभी भी गन्ना भुगतान के लिए दबाव नहीं बना। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यदि राजनीतिक दलों के किसान प्रकोष्ठ गन्ना भुगतान के संबंध में आंदोलन तेज करते तो निश्चित रूप से शासन स्तर पर दबाव बढ़ता और गन्ने का बकाया भुगतान किसानों को समय से मिलता। क्योंकि ऐसे में राजनीतिक दलों को अपना किसान वोट बैंक छिटकने की आशंका रहती। इसीलिए वह समय रहते किसान के हित में निर्णय लेते । लेकिन दोनों पार्टियों के किसान प्रकोष्ठ ने कभी किसान के बारे में सोचा ही नहीं। इसी वजह से इस बार ही नहीं बल्कि कभी भी गन्ने का बकाया भुगतान समय से नहीं हुआ । न ही जनपद की चीनी मिले कभी समय से चली । जनपद की चीनी मिले तब पेराई शुरू करती है। जब छोटे किसान का अधिकतर गन्ना कोल्हू में बिक जाता है। क्योंकि उसकी मजबूरी होती है कि ईख से खेत को खाली करके उसने गेहूं की बुवाई करने की। यह तभी संभव होता है जब वह गन्ना कोल्हू में बेचे। क्योंकि चीनी मिल तो नवंबर माह के अंतिम में जाकर चलती है। तब तक यदि छोटा किसान इंतजार करेगा तो वह न तो गेहूं की बुवाई कर सकेगा और न ही अपने जरूरी कार्य के लिए पैसे का इंतजाम कर सकेगा। इसीलिए गन्ने की सियासत को लेकर किसान परेशान हैं । उसके समझ नहीं पा रहा है कि जो गन्ने पर सियासत करते हैं वह उसके हमदर्द है भी या नहीं। फिलहाल भी जिले के सभी मिलों पर गन्ने का बकाया भुगतान रुका हुआ है ।इसमें इकबालपुर मिल पर तो पिछले साल तक का बकाया रुका हुआ है । इससे की किसान दुखी है और कम दामों में गन्ना कोल्हू में बेचने को मजबूर है।