तो अटक ही गया हिंडन एक्सप्रेस-वे निर्माण का प्लान, महाकुंभ के लिए यह रहता काफी महत्वपूर्ण मार्ग

रुड़की । हिंडन एक्सप्रेस-वे निर्माण का प्लान धरातल पर आने से पहले ही फेल हो गया। यह एक्सप्रेसवे बनता तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को काफी लाभ होता विशेषकर महाकुंभ और कावड़ जैसे धार्मिक आयोजन में यह एक्सप्रेस वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता। मोदीपुरम से लेकर हरिद्वार तक हिंडन एक्सप्रेस-वे बनना था। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार व उत्तराखंड की खंडूरी सरकार ने इस प्लान को धरातल पर लाने के प्रयास काफी तेज रखे भी थे। कोशिश तो इन सरकारों की जल्द से जल्द हिंडन एक्सप्रेस-वे का काम पूरा कराने की रही, पर तमाम अड़चनों के कारण उस समय सफलता नहीं मिल पाई। दरअसल हिंडन एक्सप्रेस-वे का काम शुरू होता कि उससे पहले ही यूपी में गंगा एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट को लेकर बवाल हो गया था। जिस कारण कई साल तक प्रक्रिया अटकी रही। इसके बाद यूपी व यूके में दो मर्तबा सत्ता परिवर्तन हो चुका है। जिससे की हिंडन एक्सप्रेस-वे का प्लान भी सिमट गया है। हिंडन एक्सप्रेस-वे प्लान तभी चल पाता यदि गंगा एक्सप्रेस- वे प्रोजेक्ट को को धरातलीय तेजी मिलती। हिंडन एक्सप्रेस-वे मोदीपुरम से गागलहेडी व यहां से सीधे हरिद्वार व विकास नगर तक बनना था। जिसमें गागलहेड़ी से लेकर धनौरी तक भूमि अधिग्रहण होनी थी। एक्सप्रेस-वे बनाने के पीछे दिल्ली- हरिद्वार और दिल्ली सहारनपुर राजमार्ग पर वाहनों का बोझ कम करना था। साथ ही इस एक्सप्रेस-वे के अगल-बगल औद्योगिक गतिविधियां बढ़ाने की भी योजना थी। बहरहाल, हिंडन एक्सप्रेस-वे के निर्माण की प्रक्रिया थम जाने से जहां उन किसानों को झटका लगा है जिनकी भूमि अधिग्रहण होनी है। वजह मुआवजा काफी बढ़ कर मिलता। वहीं उन उद्यमियों को झटका लगा है जो हिंडन एक्सप्रेस-वे के आसपास औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने की कोशिशों में जुटे थे। जानकारी के लिए बता दें कि हिंडन नदी के किनारे होते हुए गागलहेड़ी तक आठ लेन मार्ग विकसित करने का प्लान है। यहां के बाद हरिद्वार के लिए पुराने बादशाही मार्ग को एक्सप्रेस-वे में तब्दील किया जाना है। गागलहेड़ी से ही कलसिया को होते हुए विकास नगर साइड से देहरादून तक भी एक्सप्रेस-वे जाना है। इसके बनने से काफी लाभ होते जिस में मुख्य रुप से एक्सप्रेस- वे बनने से यात्रियों की शहरों के मध्य से गुजरने की मजबूरी न रहती। हाईवे पर बढ़ते वाहनों का बोझ कम हो जाता।औद्योगिक इकाइयों स्थापित करने का मौका मिलता। महाकुंभ व कांवड़ जैसे धार्मिक पर्व पर सफर करने में नहीं आती दिक्कत।कैलाशपुर, गागलहेड़ी, ढाल्ला चौरा, अमरपुर, सिकंदरपुर, दौड़बसी, चाणचक, शाहपुर, मक्खनपुर, भगवानपुर, छांगामजरी, करौंदी, किशनपुर, कलालहटी, हकीमपुर, दरियापुर, इमलीखेड़ा, बेड़पुर, धनौरी, दौलतपुर आदि गांवों की भूमि अधिग्रहित होती।

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