गीता ही एकमात्र ग्रन्थ है जिसकी जयन्ती मनाई जाती है: महामंडलेश्वर हरिचेतना नंद, टाट वाले बाबा जी को श्रद्धांजलि के साथ वेदांत सम्मेलन का समापन

हरिद्वार । गुरुवंदना के पश्चात् दर्शन एवं महेशी माता पूनम , शीला , नरेश मेहता , भावना बहन , रेनू बहन, मधु गौर ,संतोष अरोड़ा ,साध्वी किरन जी ,शान्ति देवी ने भजन के माध्यम से बाबा को श्रद्धाजंलि अर्पित की ।कार्यक्रम के संचालक डॉ सुनील बत्रा जी और माता रचना मिश्ना ने टाटेश्वर बाबा के साथ अपने अनुभवों की चर्चा की स्वामी कमलेशानंद जी , माता कृष्णामयी ने कहा कि अपने अस्तित्व को समर्पित करके ही ईश्वर को पा सकते है ।कर्म और ध्यान दोनों एक ही भाव से होने चाहिए। बाबा जी के अन्यय भक्त स्वामी विजयानंद जी ने भी अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि जो भगवान जो बोले उसे गुरु कहते है ।प्रतिकूलता को साधन बना लेना ही समझदारी है । महामण्डलेश्वर स्वामी अनन्तानंद जी ने श्रद्धांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता की । गरीब दासीय परम्परा के स्वामी रविदेव शास्त्री ,गुरु ब्रह्मदेव ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये
वेदान्त सम्मेलन में बहन महेशी ,रमा मधु भावना , गायत्रीदेवी ,सरस्वती ,सुनीता कोहली ,विजयचड्डा ,गीता ,शीला ,रेनु ,रैना ,सीमा ,रश्मि ,सुशीला कामिनीसडाना ,डॉ मोना शर्मा उमा गुलाटी, कन्हैया लाल ,रामचंद्र लेखराज ,सुनील कोहली आदि ने वेदान्त चर्चा का आनन्द लिया
दिनेश दास शास्त्री महाराज जी ने कहा कि जो भी सत्संग में सुनते है उसे मन में धारण कर लेना चाहिए ।कमलेशानंद जी ने कहा कि घाट वाले बाबा के विचारों का दर्शन कर लेना स्वयं बाबा के दर्शन के समान है ।कन्हैया महाराज ,भगत जी एवं मध्यप्रदेश से आए महाराज कृष्ण किशोरी ने कहा कि गुरु के चित्र के साथ उनके जीवन को भी हृदय में उतारना चाहिए।।कार्यक्रम के अध्यक्ष अनन्तानंद जी ने अपने अध्यक्षीय उद् बोधन में कहा कि महापुरुषों की तपस्या का फल है कि निरन्तर गंगा किनारे ये वेदान्त सम्मेलन का आयोजन हो रहा है । स्वामी हठयोगी महाराज ने पूर्णाहुति के साथ ही कार्यक्रम का समापन हुआ और भक्तों ने भण्डारे के माध्यम से प्रसाद ग्रहण किया । इससे पूर्व
गुरुवंदना के साथ तीसरे दिन का कार्यक्रम का आरम्भ किया गया ।अपने तीसरे दिन की वेदान्त चर्चा में गरीबदासी संत स्वामी हरिहरानंद ने कहा कि गीता में श्री कृष्ण ने कहा कि असत् की कभी भी सत्ता नहीं हो सकती और सत् का अभाव कभी नहीं होता ।हमें तत्वदर्शी बनना है ।बच्चों के भीतर संस्कारों का विकास करना अति आवश्यक है तभी देश का विकास संभव है ।
स्वामी रविदेव शास्त्री ने वेदान्त व्याखान में बताया कि स्वयं की पहचान ही वेदान्त है । स्वामी जी ने वृतान्त सुनाते हुए कहा कि एक बार उद्धव ने श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन आपकी प्राप्ति का सबसे सरल मार्ग क्या है ? तो कृष्ण ने उत्तर देते हुए कहा कि सत्संग ही मुझे प्राप्त करने का सबसे सरल मार्ग है ।अपने किये हुए सभी कार्यो को भगवान को समर्पण करना ही भगवद् धर्म है महामण्डलेश्वर श्री हरिचेतना जी महाराज ने वेदान्त चर्चा को आगे बढाते बताया कि गीता ही एकमात्र ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनाई जाती है ।श्री मदभागवद गीता सभी के लिये गाह्य है ।ये किसी विशेष सम्प्रदाय के लिये नहीं है ।श्री कृष्ण पूर्ण योगेश्वर है जिन्होनें युद्ध क्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया। हरिचेतना जी ने कहा कि स्वाध्याय की परम्परा को आगे बढ़ाना होगा ।हठयोगी महाराज ने वेदान्त पर चर्चा करते ड्डए बताया कि बिना सत्संग के विवेक नहीं आता । भवसागर सागर को पार करने के लिये गुरू व सत्संग जरूरी है ।सच्चा साधु अंधविश्वास के चक्कर में नहीं पड़ता ।ज्ञान को ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिए ।हम अगर मान ले कि जीवन सराय की भाँति है तो जीवन बहुत सरल हो जाएगा ।रिश्ते नाते सभी कुछ लौकिक जगत की बातें है ।अच्छी संगत परमार्थ की ओर ले जाती है ।टाटेश्वर बाबा के शिष्य स्वामी हरिहरानंद भक्त महाराज ने कहा कि जिसमें भगवान का नाम हो वही भजन है ।
माता कृष्णामयी ने वेदान्त सम्मेलन में चर्चा करते हुए कहा कि गुरू और ईष्ट दोनों एक ही रूप है ।गुरु वचन पर सदा विश्वास रखना चाहिए ।शास्त्रों का अध्ययन करके अज्ञानी रह सकते है किन्तु सत्संग करके कोई भी अज्ञानी नहीं रह सकता साधना सदन के महाराज श्री मोहन चैतन्य पुरी जी ने वेदान्त चर्चा में कहा कि सार तत्त्व को ग्रहण करना चाहिए क्योंकि जीवन अल्प है ।सभी प्राणी सत्, चित, एवं आनन्द चाहते है।वेद सनातन है इसलिए प्रमाणिक है ।सनातनी परम्परा में महापुरूषो के वाक्य वेद प्रमाणित होते है।महापुरुष कहते है कि सच्चा सुख आपके भीतर ही है ।मन के तीन द्वार है ,हरिभजन के लिये दो द्वार को बन्द करके केवल एक द्वार भक्ति द्वार को ही खोलकर रखना है ।गुरू वाक्य में श्रद्धा ही कल्याण का पहला मार्ग है विजयानंद जी महाराज जी ने बताया कि भगवान को पाना नहीं है बल्कि देखना है ।भगवान हमारे लिए सुलभ है क्योंकि हम उसकी बात समझ सकते है ।भगवान को पाने के लिये गुरु के पास जाना चाहिए ।हमें गुरु को नहीं खोजना बल्कि गुरु स्वयं हमें खोज लेता है ।भगवान के लिये जीना ही भजन है ।

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