सिंधी गाय से जुड़ी जानकारी और विशेषताएं सुनकर दंग रह जाएंगे आप, अधिक दूध देने के लिए जाना जाता हैं लाल सिंधी गाय को

 

गाय में कई प्रकार की नस्लें पाई जाती है। हर नस्ल की अपनी अलग अलग ख़ासियत है। आज हम बात करेंगें गाय की लाल सिंधी नस्ल की विशेषताओं के बारे में।
लाल सिंधी गाय को अधिक दूध देने के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण ही इसका नाम लाल सिंधी गाय पड़ा। इस गाय का रंग लाल बादामी भी होता है वहीं आकार में यह साहिवाल से लगभग मिलती जुलती है। इसके सींग जड़ों के पास से काफी मोटे होता है और बाहर की ओर निकले हुए अंत में ऊपर की ओर उठे हुए होते हैं। शरीर की तुलना में इसके कूबड़ बड़े आकर या यूँ कहें तो बैलों के समान होते हैं।

इसका वजन भी आम गायों से अधिक औसतन 350 किलोग्राम तक का होता है। पहले यह गाय सिर्फ सिंध इलाके (पकिस्तान ) में पाई जाती थीं, लेकिन अब देश के अलग अलग राज्यों में जैसे की पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। हालाँकि अभी भी इस गाय की संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं।

इस नसल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक देने की आवश्यकता है। ज्यादा खुराक पाचन शक्ति को खराब कर सकता है, फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें, ताकि अफारा या बदहजमी ना हो।

खुराक प्रबंध

जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व: उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन है।

खुराकी वस्तुएं:

अनाज और अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़ेवें, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़ेवें, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि।

हरे चारे

बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि।

सूखे चारे और आचार: बरसीम की सूखी घास, जई की घास, पराली, ज्वार और बाजरे, दूर्वा की घास, मक्की, जई आदि।

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