अंग्यारी महादेव मंदिर आध्यात्म व आस्था का केंद्र, मान्यताओं के अनुसार कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने महर्षि अंगीरा को दिए दर्शन, कुमाऊं से बागेश्वर जिला की सीमा पर स्थित है मंदिर

देहरादून । उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। अध्यात्म व आस्था के अनोखे संगम से निर्मित देवभूमि के कण-कण मे भगवान निवास करते है। यहा के प्रसिद्ध पहाड़ों की ऊंची चोटियो अथवा पवित्र नदियों के संगम स्थल पर आपको कोई ना कोई मंदिर अवश्य देखने को मिल जायेगा। प्रत्येक मंदिर का अपना महत्व एवं पौराणिक मान्यता है। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के चमोली जिला तथा कुमाऊं से बागेश्वर जिला की सीमा पर स्थित है अंग्यारी महादेव मंदिर। स्कंद पुराण के अनुसार इस स्थान पर महर्षि अंगीरा (अंग ऋषि) द्वारा सर्वप्रथम तप किया गया था इसलिए इस मंदिर का नाम अंग्यारी पड़ा। यह मंदिर आस्था का एक प्रमुख केंद्र बिंदु है। महादेव के दर्शन हेतु श्रावण माह मे यहा श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रहती है। पूरे महा चलने वाले श्रावण पर्व पर भोले के भक्त व ट्रेकिंग के शौकीन युवा यहा रात्रि विश्राम करके भगवान भोलेनाथ की अद्भुत रूप के दर्शन करते है। गोमती घाटी के इस प्रसिद्ध शिव मंदिर के चारो और घने जंगल है, जिसमें बांज, बुरांश, तिलोंज, फल्याट, लोध, काफल, रतनया आदि के असंख्य पेड़ पौधों के अलावा अनेक प्रकार की औषधिय पादप प्रजातियां है। मंदिर परिसर मे हनुमान, राधा-कृष्ण तथा शिव जी के मंदिर बने हुए है। आस्था का प्रतीक यहा का शिवलिंग सतयुग के समय का बताया जाता है। इसका वर्णन स्कंद पुराण मे भी मिलता है। गौरतलब है कि शिवालय के ठीक पीछे बद्री वृक्ष भी है, जो केवल अंग्यारी महादेव के अलावा बद्रीनाथ मे ही है। उत्तराखंड के गोद मे बसा अंग्यारी महादेव मंदिर गोमती घाटी का एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है जो कि गोमती नदी का उद्गम स्थल भी माना जाता है। यह स्थल कई साधु-संतों की तपोभूमि रही है। आज भी कई साधु-संत दूर-दूर से यहां तप करने आते है। सिमार (मजकोट) निवासी पूर्व प्रधानाचार्य श्री तिल गिरी जी के अनुसार सन 1910 मे यहा श्री भवान गिरी ने तप किया तथा कुछ वर्ष पश्चात समाधि मे लीन होकर अपना देह त्याग दिया। इसके बाद श्री प्रह्लाद बाबा व श्री महेंद्र गिरी ने इस स्थान पर पूजा व तप किया तथा अपना देह भी यही पर त्याग दिया। लगभग 19 के दशक मे गढ़वाल विश्वविद्यालय मे कार्यरत प्रोफेसर श्री काला जी साधु के रूप मे यहा मौन रहकर तप किया तथा राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण भी कराया। स्थानीय लोग काला बाबा को मोनी बाबा के रूप मे भी जानते थे। इसके अलावा श्री जवाहर गिरी कई वर्षों तक इस मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप मे रहे। इन सभी साधु-संतों की समाधि मंदिर की धर्मशाला के ठीक नीचे बनाई गयी है। श्रद्धालु भारी संख्या मे मंदिर के अलावा समाधि की पूजा अर्चना करते है। कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहा आते है उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मुख्यतः सन 1950 से लोगो का इस स्थान पर आवागमन सुचारू रूप से प्रारंभ हुआ। इस स्थल पर पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई, दुर्गम पहाड़ियों के घनघोर जंगल के सकरी मार्ग से गुजरना पड़ता है। किंतु परेशानियां श्रद्धालुओं के सच्ची आस्था और विश्वास को डिगा नही पाती। मंदिर परिसर पहुंचने पर शांति की अनुभूति मिलती है। ग्वालदम से अंग्यारी महादेव मंदिर की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है, जिसमे 5 किलोमीटर का पैदल ट्रैक भी है। ग्राम सभा मजकोट से लगभग 6 किलोमीटर पैदल दूरी तय करके यहा पहुंचा जा सकता है। मान्यता के अनुसार महर्षि अंगीरा (अंग ऋषि) द्वारा भगवान शिव की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने महर्षि अंगीरा को दर्शन दिए। साथ ही साथ इस स्थान पर गंगा, गोमती व भागीरथी नदी भी अवतरित हुई थी। किंतु धीरे-धीरे गंगा व भागीरथी विलुप्त हो गई। गोमती नदी का उद्गम स्थल भी इस मंदिर को माना जाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही गाय की आकृति की शीला के मुंह से जल की धारा निकलती है, जो वसुधारा नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस मंदिर की धारा से कभी दूध निकलता था। भक्तजन इस दूध का प्रयोग भगवान के लिए भोग बनाने मे करते थे‌। अधिक दूध के लालच मे एक बार एक चारावाह ने निगाल की छड़ को इस जलधारा मे डाल दिया जिससे दूध की जगह खून निकलना प्रारंभ हो गया। धीरे-धीरे वह दूध, जलधारा के रूप मे परिवर्तित हो गया। यह जलधारा पूरे वर्ष निरंतर बहती रहती है, जो आगे चलकर बैजनाथ (गरुड़) मे गोमती नदी के नाम से जानी जाती है।

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