आईआईटी रुड़की में हाइड्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित, विशेषज्ञ एवं नवोन्मेषक सतत ऊर्जा समाधानों पर सहयोग करते हैं

रुड़की । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के हाइड्रो एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग ने अपने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस आरएंडडी पहल के भाग के रूप में हाइड्रोकाइनेटिक तकनीक पर एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला की सफलतापूर्वक मेजबानी की। इस कार्यक्रम में भारत भर से 45 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें कनाडा, नॉर्वे, मलेशिया और जर्मनी के चार प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वक्ता अपने अग्रणी शोध को प्रस्तुत करने के लिए ऑनलाइन शामिल हुए।

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की सलाहकार डॉ. संगीता कस्तूरे ने कार्यशाला का उद्घाटन किया व कार्बन-तटस्थ तथा पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने के प्रति प्रतिभागियों एवं आयोजकों की प्रतिबद्धता की सराहना की।

एमएनआरई की सलाहकार डॉ. संगीता कस्तूरे ने कहा, “यह कार्यशाला प्रतिभागियों एवं आयोजकों की उन्नत भावना व समर्पण का प्रमाण है। यहां प्रस्तुत चर्चाएं एवं निष्कर्ष हाइड्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी को एक व्यवहार्य एवं विश्वसनीय अक्षय ऊर्जा स्रोत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।”
प्रतिभागियों में विभिन्न सरकारी निकायों जैसे एमएनआरई, यूजेवीएनएल, डीआईबीईआर-डीआरडीओ एवं एनवीवीएनएल-एनटीपीसी के प्रतिनिधियों के साथ-साथ कनाडाई हाइड्रोकाइनेटिक टरबाइन टेस्ट सेंटर, एनर्जीमाइनर, टाइडल सेल्स, टीईआरआई, किर्लोस्कर ब्रदर्स ग्रुप, स्वस्ति पावर प्राइवेट लिमिटेड, फ्लोवेल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड, मैनी रिन्यूएबल्स और मैक्लेक प्राइवेट लिमिटेड जैसे प्रमुख निर्माता व उद्योग खिलाड़ी शामिल थे। आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी मद्रास, एससीईटी सूरत, बीबीईसी असम और बिट्स पिलानी जैसे शैक्षणिक संस्थानों ने भी हाइड्रोकाइनेटिक ऊर्जा डिजाइनों पर अपने नवीनतम शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए।
कार्यशाला के दौरान, प्रतिभागियों ने विभिन्न विषयों पर जानकारीपूर्ण सत्रों में भाग लिया, जिसमें हाइड्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी का अवलोकन, हाइड्रोकाइनेटिक साइट क्षमता का आकलन करने की पद्धतियां, तथा भारतीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों द्वारा वर्तमान एवं भविष्य की हाइड्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन शामिल था।
कार्यशाला में हाइड्रोकाइनेटिक तकनीक के महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव एवं महत्व पर प्रकाश डाला गया, जिसमें न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ ऊर्जा उत्पादन में क्रांति लाने की इसकी क्षमता को प्रदर्शित किया गया। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के लिए एक स्वच्छ एवं टिकाऊ विकल्प प्रदान करके, हाइड्रोकाइनेटिक तकनीक दूरदराज और वंचित समुदायों को विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान कर सकती है, जिससे ऊर्जा समानता को बढ़ावा मिलता है। आर्थिक चर्चाओं में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में इस तकनीक की भूमिका पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों ने तैनाती संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए आगे अनुसंधान की आवश्यकता पर जोर दिया और कम्प्यूटेशनल द्रव गतिकी (सीएफडी) और डिजाइन दक्षता जैसे तकनीकी पहलुओं को बढ़ाया। 2030 तक प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर (टीआरएल) 9 को प्राप्त करने से न केवल प्रौद्योगिकी में प्रगति होगी, बल्कि समुदाय स्तर पर इसकी मापनीयता और एकीकरण भी सुनिश्चित होगा, जिससे आर्थिक विकास, रोजगार सृजन और एक स्थायी भविष्य को बढ़ावा मिलेगा। आईआईटी रुड़की की इस उन्नत क्षेत्र के प्रति प्रतिबद्धता अक्षय ऊर्जा समाधान एवं पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।
प्रोफेसर अरुण कुमार, प्रोफेसर सी.एस. पंत एवं प्रोफेसर एम.के. सिंघल के साथ-साथ शोधकर्ताओं की एक समर्पित टीम ने इस प्रभावशाली कार्यशाला के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा, “कार्यशाला ने हाइड्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने में सहयोगी अनुसंधान एवं उद्योग साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रदर्शित किया। हमारे सामूहिक प्रयास टिकाऊ और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों का मार्ग प्रशस्त करेंगे।”
कार्यशाला के बारे में चर्चा करते हुए, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. के.के. पंत ने कहा, “हमें ऐसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों की मेजबानी करने पर गर्व है जो नवाचार एवं सहयोग को बढ़ावा देते हैं। आईआईटी रुड़की स्थायी प्रौद्योगिकियों के विकास को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है जो बड़े स्तर पर समाज को लाभान्वित करेंगे।”
इस कार्यक्रम का समापन प्रतिभागी संस्थाओं एवं संगठनों के बीच एक संयुक्त मंच बनाने के प्रस्ताव के साथ हुआ, ताकि समग्र दृष्टिकोण को अपनाया जा सके और एक स्थायी ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोकाइनेटिक टेक्नोलॉजी (एचकेटी) की विश्वसनीय तैनाती सुनिश्चित की जा सके।

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