चैत्र नवरात्रि के पहले दिन करें मां शैलपुत्री की पूजा, मां शैलपुत्री को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली माना जाता है, माता मुश्किलों के समयों में करती हैं अपने भक्तों की रक्षा
आज से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा का विधाव है। मां शैलपुत्री को कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली माना जाता है। माता मुश्किलों के समयों अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। इसी के साथ उनकी सारी इच्छाओं को पूरा करती हैं। मां शैलपुत्री साधक के मूलाधार चक्र को जागृत करने में भी मदद करती हैं। मूलाधार चक्र हमारे शरीर में ऊर्जा का केंद्र है।
कैसा है मां शैलपुत्री का स्वरुप?
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। उनका स्वरूप अत्यंत शांत, सरल और दया से पूर्ण है। उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प शोभायमान है। उनकी सवारी वृषभ है। मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है।
कलश स्थापना
हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना का बहुत महत्व है। कलश स्थापना की दौरान देवी मां की चौकी लगाई जाती है और पूरे 9दिनों तक उनके 9अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। ऐसे में कलश की स्थापना मुहूर्त के अनुसार ही होनी चाहिए।
घटस्थापना का मुहूर्त – उदया तिथि के अनुसार, इस बार नवरात्रि का शुभारंभ 30मार्च (रविवार) से होगा। ऐसे में कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह 6बजकर 13मिनट पर शुरु होगा। इसका समापन सुबह 10बजकर 22मिनट पर होगा।
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त – अभिजीत मुहूर्त की शुरुआत दोपहर 12बजकर 01मिनट पर होगी। जिसका समापन 12बजकर 50मिनट पर होगा।
कलश स्थापना की पूजन-विधि
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना का बहुत महत्व है। घट यानी मिट्टी का घड़ा। घटस्थापना के लिए ईशान कोण शुभ माना जाता है। घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालकर इसकी पूजा करें। फिर इसे ईशान कोण में स्थापित कर दें। कलश स्थापना की दौरान देवी मां की चौकी लगाई जाती है और पूरे 9दिनों तक उनके 9अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है।
मां शैलपुत्री का भोग
माता शैलपुत्री की पूजा में विशेष रूप से सफेद रंग का बहुत महत्व है। सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। इसलिए मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए सफेद रंग की चीजों का भोग लगाना चाहिए। मां शैलपुत्री के भोग में आप सफेद मिठाई, जैसे खीर, खाजा अर्पित कर सकते हैं। इसके अलावा दूध और दही का भी भोग लगा सकते हैं।
मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथाओं की मानें तो मां शैलपुत्री राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। जिनका नाम सती था। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। लेकिन राजा दक्ष प्रजापति इस विवाह से खुश नहीं थे। एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इस यज्ञ के लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया। लेकिन उन्होंने अपनी पुत्री सती और दामाद भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया।
बावजूद इसके देवी सती उस यज्ञ में गई। लेकिन उनके पिता ने उनके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं किया और भगवान शिव का उपहास उड़ाया। अपने पिता की हरकत से देवी सती को बहुत ठेस पहुंची। इसके बाद वह उस यज्ञ कुंड में बैठ गईं और खुद को भस्म कर दिया।
मां शैलपुत्री का मंत्र
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।