धरना प्रदर्शन में ही बीत जाएगा सीजन गन्ना भुगतान जल्द किए जाने को एक बार भी नहीं बन पाया दबाव
रुड़की । लगता है कि सीजन इस बार का सीजन धरने प्रदर्शन में ही बीत जाएगा। पर किसान को उसके गन्ने का भुगतान नहीं मिल पाएगा। क्योंकि एक बार भी चीनी मिलों पर ऐसा दबाव नहीं बन पाया जिससे कि वह जल्द भुगतान कर दें। दरअसल, हरिद्वार जनपद में किसानों के अनेकों संगठन हैं। सभी संगठनों कि अपने अपने एजेंडे हैं। कुछ खुले हो जाते हैं तो कुछ गुप्त जानते हैं जिन पर संगठन काम कर रहे हैं। इन संगठनों में गन्ना भुगतान जैसे मुद्दे पर भी एका नहीं है। ऐसे में अन्य मुद्दों पर तो किसान संगठनों में एक राय होने का कोई मतलब ही नहीं। सभी किसान संगठन ज्यादा कम करके भुगतान के संबंध में धरने प्रदर्शन बैठक कर रहे हैं। ऐसा कोई दिन जाता होगा ।जिस दिन की किसी न किसी किसान संगठन की ओर से चीनी मिल प्रबंधन और प्रशासन को भुगतान के संबंध में चेतावनी न दी जाती हो ।बीच-बीच में घेराव और प्रदर्शन का सिलसिला भी बना रहता है। लेकिन ऐसा कोई अवसर अभी तक नहीं आया है । जिससे कि किसान संगठनों का व्यापक दबाव बना हो और प्रशासन उन चैनलों पर सख्ती बरतने को मजबूर हो जाए। इसमें काफी दिनों तक तो इकबालपुर चीनी मिल के सामने लगातार धरना जारी रहा। लेकिन वही पुरानी बात । प्रशासन की ओर से आश्वासन मिला तो धरने प्रदर्शन और अन्य तरीकों के आंदोलन की धार खत्म हो गई। अब फरवरी और आधा मार्च सीजन का बचा है। इस बीच गन्ने के भुगतान में तेजी आ जाए ऐसी कोई संभावना दूर तक नजर नहीं आ रही है। कहने का मतलब साफ है कि चीनी मिले हर वर्ष की तरह इस बार भी किसान का गन्ना उधार पर कर फिर से सीजन समाप्ति की घोषणा कर देंगे। फिर किसान गन्ने के भुगतान के लिए तरसेगा। भुगतान नहीं मिलेगा तो गन्ना किसान सहकारी समितियों के अलावा गन्ना समिति व अन्य स्थानों से खेती-बाड़ी के कामकाज के लिए ऋण प्राप्त करेगा। इसी के साथ तो किसान संगठनों को भी गन्ने भुगतान को लेकर आंदोलन की तैयारियों चेतावनी देने का अवसर मिलता रहेगा। इस बात को जिले का गन्ना किसान भी स्वीकार कर रहा है कि किसान संगठन यदि एक जगह आए तो चीनी मिल प्रबंधन पर निश्चित रूप से दबाव बन सकेगा। इससे पहले गन्ना भुगतान की कोई संभावना नहीं है। लेकिन किसान संगठनों में वर्चस्व की लड़ाई है। इसीलिए वह कभी एक मंच पर आने को तैयार नहीं हुए हैं। रही बात प्रशासन की प्रशासन सभी चीनी मिलों पर शिकंजा कसता है जो उस पर किसान संगठनों का दबाव बनता है। अब कुछ वर्षों से प्रशासन पर अब पहले जैसा दबाव नहीं बन रहा है। जिस कारण प्रशासन भी चीनी मिलों को चेतावनी देने तक सीमित है। फिलहाल सभी चीनी मिलों पर मिलाकर करीब 500 करोड रुपए बकाया है। इसमें करीब 200 करोड़ से अधिक की रकम तो पिछले गन्ने के भुगतान की है। अब देखना यह है कि प्रदेश की चीनी मिले किसान का कितना पैसा रख कर सीजन समाप्ति की घोषणा करती हैं। रही बात फरवरी माह की। इस माह में कुल्लू में भी गन्ने के दाम काफी बढ़ जाते हैं। ऐसे में निश्चित रूप से चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति हुई कम होगी। कोल्हू में दाम बढ़ने के साथ ही नगद पैसा मिलता है। इसीलिए किसान की कोशिश रहती है कि अपनी जरूरतों के लिए गन्ना कोल्हू ही बेच दिया जाए।