आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने लार के ऐसे प्रोटीनों का पता लगाया जो मेटास्टेटिक ट्रिपल-नेगेटिव स्तन कैंसर की चेतावनी देने में मदद करेंगे

रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) के शोधकर्ताओं ने लार के ऐसे तीन प्रोटीनों की पहचान की है और यह सत्यापन किया है कि वे मेटास्टैटिक ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी) का पूर्वानुमान दे सकते हैं। उन्होंने जो प्रक्रिया विकसित की है वह लार में टीएनबीसी के बायोमार्कर की पहचान कर सकती है।टीम ने निदान की जो पद्धति अपनाई है वह लार ग्रंथि के कार्य पर आधारित है जो स्तन कैंसर के मरीजों में बाधित हो जाता है। उनकी प्रोटीन संरचना भी बदल जाती है। इस तरह एक प्रभावी बायोमार्कर मिल जाएगा यदि इस अंतर की पहचान और इसकी मात्रा निर्धारित की जा सके।भारत में महिलाओं के कैंसरों मं सबसे आम स्तन कैंसर है। हर साल 1.6 लाख से अधिक स्तन कैंसर के मामले दर्ज किए जाते हैं और इससे अस्सी हजार से अधिक मृत्यु होती है। स्तन कैंसर के सभी मामलों में लगभग 10 से 15 प्रतिशत मेटास्टेटिक टीएनबीसी होता है जो सबसे खतरनाक है और इस पर सामान्य हार्मानल और एचईआर 2-प्रोटीन पर वार करने वाली दवाओं का असर नहीं होता है।यह शोध डॉ- किरण अंबातिपुडी, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोसाइंसेज और बायोइंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी रुड़की के मार्गदर्शन में किया गया और इसमें शामिल थे आईआईटी रुड़की में डॉक्टरेट के विद्यार्थी श्री कुलदीप गिरी और सुश्री सुदीपा मैती। तीन शोधकर्ताओं द्वारा तैयार इस शोध पत्र के निष्कर्ष प्रतिष्ठित पीयर-रिव्यू जर्नल ऑफ प्रोटिओमिक्स (DOI – https://doi.org/10.1016/j.jprot.2022.104701) में प्रकाशित किए गए थे।

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर अजीत के चतुर्वेदी ने शोधकर्ताओं को बधाई देते हुए कहा शोध के निष्कर्ष से जल्द निदान और उपचार में मदद मिलने की संभावना जगी है। इससे मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।डॉ किरण अंबातिपुडी, एसोसिएट प्रोफेसर, बायोसाइंसेज और बायोइंजीनियरिंग विभाग आईआईटी रुड़की ने इस शोध की जानकारी और इस क्षेत्र में जल्द से जल्द विकास करने के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “मेटास्टैटिक टीएनबीसी के बायोमार्कर की पहचान करने के लिए पिछले दशकों में कई प्रयास किए गए लेकिन कुछ भी ऐसा नहीं मिला जो व्यावहारिक उपयोग में काम आए।”डॉ किरण अंबातिपुडी ने बताया स्तन कैंसर के निदान के लिए वर्तमान में बायोप्सी और रेडियोलॉजिकल आकलन किया जाता है। लेकिन ये शरीर के अंदर तक असर डालने वाली (इनवेज़िव) प्रक्रियाएं हैं और आमतौर पर लक्षण दिखने के बाद ही इलाज में इनका उपयोग किया जाता है लेकिन तब तक मुमकिन है इलाज में बहुत देर हो जाए। स्तन कैंसर के मरीजों में रुग्णता की उच्च दर का मुख्य कारण समस्या का पता लगने में देर होना है। इसलिए ऐसी तकनीकों का विकास करना आवश्यक हो जाता है जो ‘नॉन-इनवेजिव’ हो और इतना संवदेनशील भी कि शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता लगाए।* शोधकर्ता टीम ने स्वस्थ प्रतिभागियों और टीएनबीसी ग्रस्त लोगों के लार एकत्र किए। लार के नमूनों में मौजूद प्रोटीनों को अलग किया गया और टार्गेटेड मास स्पेक्ट्रोमेट्री से पर्याप्त परिवर्तन देखने के लिए परीक्षण किया गया।टीम ने परीक्षण में यह देखा कि स्वस्थ प्रतिभागियों और कैंसर ग्रस्त प्रतिभागियों के तीन लार प्रोटीन – लिपोकेलिन-1, एसएमआर-3 बी, और प्लास्टिन-2 की मात्रा में अंतर था। शोध के तहत इन तीन प्रोटीनों से पांच पेप्टाइड्स (जिनसे प्रोटीन बनते हैं) भी अलग किए गए जो आक्रामक टीएनबीसी और स्वस्थ प्रतिभागियों में काफी अलग थे। ये पेप्टाइड्स 80 प्रतिशत संवेदनशीलता और 95 प्रतिशत स्पष्टता के साथ टीएनबीसी की मौजूदगी बता सकते हैं। प्रमुख शोधकर्ता डॉ- किरण अंबातिपुडी ने शोध की अहमियत बताते हुए कहा, ‘‘यदि मरीजों के बड़े समूहों पर शोध के निष्कर्षों का उचित रूप से सत्यापन किया जाए तो जो पेप्टाइड मार्कर मिले हैं भविष्य में स्तन कैंसर के निदान में शक्तिशाली हथियार साबित हो सकते हैं।“

पर हमसे जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक  करे , साथ ही और भी Hindi News (हिंदी समाचार ) के अपडेट के लिए हमे पर फॉलो करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *